दोनों मौत वर्ष २०१४ में हुई। इससे पहले वर्ष २०१० में ११ और २००६ में २५ लोगों की मौत हुई थी। वर्ष २०१० से लेकर अब तक प्रदेश में मलेरिया के १,४२,९३० मरीज मिले हैं। जबकि इसी अवधि में १३ मरीजों की मौत हुई। इस वर्ष के पहले तीन महीने में ९४१ मरीज मिले हैं।
पूर्व उन्मूलन चरण में
देश में मलेरिया के मामलों में कर्नाटक १३वें स्थान पर है। गत वर्ष प्रदेश में सामने आए मलेरिया के ७१ फीसदी मरीज उडुपी और मेंगलूरु से थे। हालांकि वर्ष २०१६ के मुकाबले इन दो जिलों के मरीजों में ६९ फीसदी तक की कमी आई है। प्रदेश मलेरिया के पूर्व उन्मूलन चरण में है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च, बेंगलूरु के अनुसार इस उपलब्धि के पीछे २४ वर्ष की मेहनत है।
निजी चिकित्सकों की राय अलग
शहर के कई निजी चिकित्सक सरकारी अंाकड़ों से सहमत नहीं हैं। इनके अनुसार मलेरिया से मौते हो रही हैं। मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में मलेरिया से हर साल दो लाख लोग मरते हैं।
यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकलन (15 हजार मौत) से 13 गुना और खुद देश के राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण योजना के अनुमान (औसतन एक हजार मौत) से 200 गुना ज्यादा है। आंकड़ों के अंतर का मुख्य कारण है मलेरिया पहचान तरीकों का सभी तक पहुंच न होना। मलेरिया के ज्यादातर मरीज ग्रामीण इलाकों में रहते हैं। वे न तो चिकित्सालय जाते हैं और न ही उनके मामलों का लेखाजोखा
रखा जाता है।
एकाएक चढ़ते-उतरते बुखार से सावधान
डॉ. अर्चना संपत बताती हंै कि मलेरिया के शुरुआती चरण में सर्दी-जुकाम या पेट में गड़बड़ी जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं, कुछ दिनों बाद सिर, शरीर और जोड़ों में दर्द, ठंड लग कर बुखार आना, नब्ज तेज हो जाना, उल्टी या पतले दस्त की समस्या होने लगती है। जब बुखार अचानक से बढ़ कर 3-4 घंटे रहे और अचानक उतर जाए तो इसे मलेरिया की सबसे खतरनाक स्थिति मानी जाती है। मलेरिया का इलाज संभव है बस जरूरत है तो सही समय पर उपचार की।