पर्यावरणविदों के विरोध के बाद भी राज्य सरकारें लगातार इस परियोजना के लिए दबाव डाल रही हैं लेकिन चाहे वह केंद्रीय या राज्य हर वैधानिक प्राधिकरण से इसे अस्वीकार कर दिया गया है। ताजा मामले में एनटीसीए ने भी परियोजना को पूरी तरह से खारिज करने की सिफारिश करते हुए कहा है कि इस परियोजना में जंगल पारिस्थितिकी, जल संसाधन, इसके जल निकासी नेटवर्क और वनस्पति तथा जीवों पर एक बड़ा अपरिवर्तनीय प्रभाव होगा।
इसके अलावा रेलवे ट्रैक से बाघों, हाथियों और कई लुप्तप्राय और स्थानिक जीवों पर भी प्रभाव पड़ेगा और उनके विनाश का कारण बन सकता है। एनटीसीए, एआइजीएफ बेंगलूरु के डॉ राजेन्द्र गरवाड़, भारतीय वन्यजीव संस्थान के परियोजना वैज्ञानिक डॉ कौशिक बनर्जी और संयुक्त निदेशक (वन्यजीव) डॉ आर गोपीनाथ की एक समिति ने परियोजना के खिलाफ अपनी सिफारिश रिपोर्ट सौंपी है।
रिपोर्ट में परियोजना की व्यवहार्यता पर भी सवाल किया गया है जिससे आने वाले समय में परियोजना के लिए राज्य सरकार दोबारा प्रस्ताव भेजे उसमें में मुश्किल है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस क्षेत्र में लौह अयस्क खनन और निर्यात का कारोबार लगभग अपने अंतिम चरण में है। भविष्य में इसके विस्तार की कोई संभावना नहीं है।
इसलिए परियोजना के पीछे जो मकसद बताया गया है वह है ही नहीं। इस समय में खनन की जितनी गतिविधियां हो रही हैं उसके परिवहन लिए मौजूदा सड़क नेटवर्क ही पर्याप्त है और भविष्य की सीमित जरुरतों के लिए भी इन्हीं सड़कों से काम हो जाएगा।
एनबीडब्लूएल ने किया अस्वीकार्य
हाल ही में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनबीडब्लूएल) ने भी विवादास्पद हुब्बली-अंकोला रेलवे परियोजना को अस्वीकार्य बताया था। एनबीडब्ल्यूएल ने कहा कि यह पश्चिमी घाटों के प्रमुख वन क्षेत्र में क्रियान्वित होनी है जिस तरह से परियोजना की कल्पना की गई है, वह अस्वीकार्य है।
इसके लिए 1,300 एकड़ वन भूमि का दावा किया गया है जिसमें लाखों पेड़ काटे जाएंगे और विविध प्रकार के वन्यजीवों का ठिकाना छिन जाएगा। नई रेलवे लाइन के लिए 1.73 लाख पेड़ काटने का प्र्रस्ताव है जो अस्वीकार्य है।