scriptमध्यम आयु वर्ग की 10-15 फीसदी महिलाओं को क्रोनिक फटीग सिंड्रोम | 10-15 percent of middle-aged women suffer from chronic fatigue syndrome | Patrika News
बैंगलोर

मध्यम आयु वर्ग की 10-15 फीसदी महिलाओं को क्रोनिक फटीग सिंड्रोम

इस भागदौड़ की जिंदगी में थकान आम है, लेकिन बिना किसी विशेष कारण और निजात के तमाम प्रयासों के बावजूद इसका लंबे समय तक हावी रहना क्रोनिक फटीग सिंड्रोम (सीएफएस) या मायलजिक एन्सेफेलोमाइलाइटिस का संकेत हो सकता है। कोरोना महामारी के बाद से प्रभावितों की संख्या और बढ़ी है। सीएफएस युवा और मध्यम आयु वर्ग […]

बैंगलोरMay 16, 2024 / 06:59 pm

Nikhil Kumar

ठोस कारण अज्ञात पर हार्मोनल असंतुलन, विटामिन डी की कमी, खराब जीवनशैली, जेनेटिक और पर्यावरणीय कारक हो सकते हैं जिम्मेदार

इस भागदौड़ की जिंदगी में थकान आम है, लेकिन बिना किसी विशेष कारण और निजात के तमाम प्रयासों के बावजूद इसका लंबे समय तक हावी रहना क्रोनिक फटीग सिंड्रोम (सीएफएस) या मायलजिक एन्सेफेलोमाइलाइटिस का संकेत हो सकता है। कोरोना महामारी के बाद से प्रभावितों की संख्या और बढ़ी है। सीएफएस युवा और मध्यम आयु वर्ग के पुरुषों की तुलना में महिलाओं में आम है। हार्मोनल असंतुलन, जेनेटिक और पर्यावरणीय कारक, विटामिन डी की कमी कारण हो सकता है। चिकित्सकों के अनुसार यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें बिना किसी कारण के छह महीने से अधिक समय तक थकावट रहती है। बिना मेहनत के भी थकान परेशान करती रहती है। आराम करने से भी खत्म नहीं होती है। हालांकि, जीवनशैली में बदलाव ला काफी हद तक इससे निपटा जा सकता है।
तनाव, अवसाद आम ट्रिगर

न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अनिल रामकृष्ण ने बताया कि मध्यम आयु वर्ग की 10-15 फीसदी महिलाएं सीएफएस से प्रभावित हैं। ज्यादातर मामलों में तनाव और अवसाद आम ट्रिगर होते हैं। मरीज अक्सर चिंता, अवसाद, सहनशीलता की कमी, निष्क्रियता, शरीर में दर्द, सिर दर्द, बार-बार गला खराब होने, बढ़े हुए लिम्फ नोड्स, काम के बाद तबीयत खराब होने, संज्ञानात्मक कठिनाइयों और नींद में खलल की शिकायत करते हैं। सीएफएस का प्रत्यक्ष कारण अज्ञात है। जीवनशैली में बदलाव और परामर्श से फायदा होता है।
कम खुराक वाले एंटीडिप्रेसेंट

जनरल फिजिशियन डॉ. प्रीति शंकर ने बताया कि सीएफएस किसी भी उम्र में हो सकता है। यह आम तौर पर किशोरों और मध्यम आयु वर्ग के व्यक्तियों में अधिक देखा जाता है। संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी, व्यायाम, नींद प्रबंधन, संतुलित आहार, ध्यान या योग से मदद मिलती है। कुछ मामलों में कम खुराक वाले एंटीडिप्रेसेंट की आवश्यकता हो सकती है। बहुत अधिक वसायुक्त, तला और प्रोसेस्ड भोजन से परहेज बेहतर रहेगा।

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