एआरटी पर मरीज स्थिर हो तो इसके बाद साल में एक बार वीएलटी होनी चाहिए।
वायरल लोड परीक्षण में पता चलता है कि मरीजों को दी जा रही दवा काम का रही है या नहीं।
वायरल लोड परीक्षण में पता चलता है कि मरीजों को दी जा रही दवा काम का रही है या नहीं।
यह जांच रीयल टाइम पीसीआर मशीन से की जाती है। लेकिन देश में केवल 10 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में वीएलटी की सुविधा है।वो भी केवल उन्हीं मरीजों की जांच होती है जिनमें दवाइयों के काम नहीं करने का शक हो।
ऐसे में अनुमान लगाना मुश्किल है कि एआरटी ले रहे 11.81 लाख मरीजों में से कितनों पर दवाइयां काम रही है या नहीं। देश को एचआइवी-एड्स मुक्त करने का लक्ष्य हासिल करना है तो एआरटी और वीएलटी को बढ़ावा देना होगा। हर मरीज की नियमित वीएलटी होनी चाहिए।
उक्त मुद्दों के अलावा समय रहते पहचान, महिलाओं और नवजातों में एचआइवी, क्षय रोग और एचआइवी, अनुसंधान, एचआइवी प्रबंधन व विवाद, एंटी रेट्रो वायरल दवा (एआरटी), यौन संचारित एचआइवी, दवा प्रतिरोध में नवीनतम रुझान, भविष्य की दवाइयां, टीका में हालिया प्रगति, एचआइवी विधेयक और कानून आदि विषयों पर मंथन के साथ एड्स सोसाइटी ऑफ इंडिया (एएसआइ) के 11वें तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन की शुरुआत शुक्रवार को हुई।
डॉ. ग्लोरी एलेक्जेंडर ने कहा कि माता-पिता से बच्चों को एचआइवी की बात करें तो वर्ष 2017 तक देश में 22,677 गर्भवती महिलाएं थीं। इनमें 13,716 (60.5 फीसदी) महिलाएं एआरटी पर थीं। जबकि इस अवधि में कर्नाटक की स्थिति बेहतर थी।1951 में से 1421 (72.8 फीसदी) महिलाएं एआरटी पर थीं।
सेंट जॉन मेडिकल कॉलेज के डॉ. जी. डी. रविन्द्रन ने कहा कि वर्ष 2017 तक कर्नाटक के 2,47,413 एचआइवी के मरीजों में से 1,23,821 महिलाएं थीं। 2,47,413 में से 1,55,411 (62.8 फीसदी) मरीज ही एआरटी पर थे।
वर्ष 2010-17 के दौरान एड्स से होने वाली मौतों में 68 फीसदी तक कमी आई।जबकि नए मामलों में 46 फीसदी तक गिरावट दर्ज हुई। बावजूद इसके वर्ष 2017 में एचआइवी के 5008 नए मरीज मिले। कर्नाटक में फिलहाल एचआइवी के 2.47 लाख मरीज हैं।