दरअसल, अर्थ ऑब्जर्वेशन, संचार, नेविगेशन और वैज्ञानिक जरूरतों के मद्देनजर इसरो पर बड़ी संख्या में उपग्रह सेवाओं की बढ़ती मांग पूरा करने की जिम्मेदारी है। इन मांगों को पूरा करने के लिए इसरो ने अगले तीन साल में कम से कम 70 उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने की योजना बनाई है। इसी दौरान 21 रॉकेट भी छोड़े जाएंगे। केंद्र सरकार ने इसरो के लिए 8 हजार 6 58 .74 करोड़ रुपए मंजूर किए थे जिसके तहत इसरो को 31 रॉकेट छोडऩे थे । इन 31 रॉकेट में 15 पीएसएलवी, 13 जीएसएलवी और तीन जीएसएलवी मार्क-3 का प्रक्षेपण शामिल है। अभी तक इसरो ने 10 रॉकेट लांच किए हैं। शेष 21 रॉकेट अगले तीन साल के दौरान लांच किए जाएंगे।
इन अभियानों में कुछ विदेशी उपग्रह भी वाणिज्यक करार के तहत छोड़े जाएंगे। परमाणु ऊर्जा एवं अंतरिक्ष राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि रॉकेटों की क्षमता के अधिकतम उपयोग के लिए विदेशी उपग्रहों का भी प्रक्षेपण किया जाएगा। इसरो ने यह भी कहा है कि वही वर्ष 2017 के बाद वह फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी सीएनईएस के रॉकेट एरियन स्पेस की सेवाएं नहीं लेगा। अभी तक भारी संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए इसरो एरियन-5 रॉकेट पर निर्भर था लेकिन जीएसएलवी मार्क-3 के पहले सफल प्रक्षेपण के बाद एजेंसी ने विश्वास व्यक्त किया है कि उसके पास इसकी क्षमता प्रमाणित हो चुकी है। जीएसएलवी मार्क-3 चार टन वजनी उपग्रहों को पृथ्वी की भू-अंतरण कक्षा (जीटीओ) तक पहुंचाने की योग्यता रखता है।
इस बीच जितेंद्र सिंह ने कहा कि इसरो उद्योगों के साथ मिलकर प्रक्षेपण वाहनों के निर्माण में तेजी लाएगा। इसके प्रयास शुरू हो गए हैं। इससे प्रक्षेपण क्षमता बढ़ेगी लेकिन, इसके लिए विदेशों से मदद नहीं मांगी गई है। इसरो ने उद्योगों के कंसोर्टियम से तैयार पहले पीएसएलवी का प्रक्षेपण वर्ष 2020 तक करने की योजना बनाई है।
जब उद्योगों के कंसोर्टियम पीएसएलवी निर्माण की जिम्मेदारी संभाल लेंगे तब इसरो का ध्यान भारी रॉकेटों की क्षमता बढ़ाने पर होगा और सेमी क्रायोजेनिक इंजन युक्त जीएसएलवी मार्क-3 और पुन: उपयोगी प्रक्षेपण यान (आरएलवी) के विकास को गति मिलेगी। इससे आगे चलकर उपग्रहों की प्रक्षेपण लागत में काफी कमी आएगी।