इस मामले की सुनवाई पहले न्यायाधीश कृष्णा एस.दीक्षित की एकल पीठ ने की थी। मामले की गंभीरता और संवेदनशीलता को देखते हुए उन्होंने इसे पूर्ण बेंच के पास भेज दिया। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ऋतुराज अवस्थी, न्यायाधीश कृष्णा एस.दीक्षित और न्यायाधीश जेएम काजी की पूर्ण पीठ ने इस मामले की सुनवाई शुरू की। पूर्ण पीठ ने एक अंतरिम आदेश भी दिया जिसमें वैसे स्कूल-कॉलेजों में हिजाब, भगवा शॉल या धार्मिक पहचान उजागर करने वाले पोशाकों पर रोक लगा दी गई जहां पहले से यूनिफार्म व्यवस्था लागू है।
न्यायालय के सामने हैं ये अहम सवाल
हाइ कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनीं और पक्षकारों तथा हस्तक्षेपकर्ताओं को अपनी लिखित दलीलें पेश करने की छूट दी। अब इस मामले में न्यायालय के समक्ष एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या हिजाब पहनना इस्लाम की आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा है? और क्या ऐसे मामलों में राज्य के हस्तक्षेप की आवश्यकता है? अदालत को यह भी विचार करना है कि क्या हिजाब पहनना संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति के अधिकार के अंतर्गत आता है? क्या अनुच्छेद 19(2) के तहत इस पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है?
याचिकाकर्ताओं ने कॉलेज विकास समितियों (सीडीसी) को यूनिफॉर्म निर्धारित करने के लिए अधिकृत करने वाले 5 फरवरी के सरकारी आदेश को भी चुनौती दी है। याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलील में कहा कि शिक्षा अधिनियम में सीडीसी का कोई प्रावधान नहीं है।
सरकार ने सीडीसी को सही ठहराने के लिए अधिनियम के तहत प्रदत 'अवशिष्ट शक्तियोंÓ की दलील दी। सरकार ने अदालत में यह भी दावा किया कि उसका इरादा किसी भी समुदाय की धार्मिक मान्यताओं में हस्तक्षेप करना नहीं है। केवल शैक्षणिक संस्थानों में धर्मनिरपेक्षत, एकरूपता, अनुशासन और सार्वजनिक व्यवस्था की भावना को बनाए रखने में उसका विश्वास है।