बेंगलूरु. राजस्थान जैन श्वेेतांबर मूर्तिपूजक संघ जयनगर में बुधवार को धर्मनाथ जैन मंदिर की 40 वांं ध्वजारोहण आचार्य देवेंद्रसागर सूरी की निश्रा में संपन्न हुआ। शुभ मुहूर्त में मुख्य मंदिर के अलावा देवी-देवताओं के मंदिर शिखर पर आचार्य की निश्रा में लाभार्थी परिवार ने ध्वजारोहण किया। ध्वजारोहण के पूर्व सामूहिक स्नात्र महोत्सव एवं सत्तरभेदी पूजन अनुष्ठान हुआ। इस अवसर पर आचार्य ने कहा कि धुआं दूर से देखने मात्र से ही अग्नि होने का अहसास होने लगता है। इसी तरह कई किलोमीटर दूर से ध्वजा दिखाई देने से जिन मंदिर होने का आभास होने लगता है। यह आभास भी होता है कि यंहा पर जिनालय है, भगवान का आवास है। ध्वजा में लोगों को बुलाने की क्षमता होती है। श्रावकों को चाहिए की वह भी ध्वजा को देखकर भगवान का मंदिर होने का अहसास कर प्रभु को हृदय में विराजमान कर स्तुति करे। जीवन सार्थक होता जाएगा। मान्यताओं के अनुसार हर दिन लोग मंदिर जाकर भगवान की पूजा करते हैं लेकिन किसी कारण से मंदिर नहीं जा पाते हैं तो शास्त्रों में उनके लिए भी उपाय बताया गया है कि मंदिर ना जाने से भी मंदिर जाने का पुण्य मिलता है। माना जाता है कि मंदिर के अंदर नहीं जा पा रहे हैं तो बाहर से ही मंदिर के शिखर को प्रणाम कर सकते हैं। माना जाता है कि शिखर दर्शन से भी उतना पुण्य मिलता है जितना मंदिर में प्रतिमा के दर्शन करने से मिलता है। शास्त्रों में कई जगह लिखा गया है कि शिखर दर्शनम पाप नाशम। इसका अर्थ है कि शिखर के दर्शन कर लेने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। मंदिर ऊंचे बनाने और उनपर शिखर लगाने का ये कारण होता है कि लोग आसानी से मंदिर के शिखर को देख पाएं। माना जाता है कि जब भी मंदिर के बाहर से गुजरें तो ध्वज और कलश को प्रणाम जरुर करना चाहिए। शिखर के दर्शन करते हुए आंखें बंद करके अपने इष्ट देव को अवश्य याद करना चाहिए। इससे मंदिर में जाने जितना ही पुण्य प्राप्त होता है। अंत में बड़ी शांति का पाठ करके सभा का समापन किया गया।