सरकारी अस्पतालों में सी-सेक्शन के मामलों में कर्नाटक (Karnataka) तीसरे स्थान पर है। पहला तमिलनाडु (Tamil Nadu) और दूसरा स्थान महाराष्ट्र (Maharashtra) का है। जबकि निजी अस्पतालों में सी-सेक्शन (C-section) के मामलों में आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के बाद कर्नाटक का नंबर है। स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली के तहत केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Union Ministry of Health and Family Welfare) के आंकड़े बताते हैं कि देश भर में बीते 10 वर्ष के दौरान निजी अस्पतालों में 413 फीसदी और सरकारी अस्पतालों में 311 फीसदी वृद्धि हुई है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ अविनियमित स्वास्थ्य क्षेत्र (Unregulated health sector) और प्रसूता की इच्छा को बड़ा कारण मान रहे हैं। कर्नाटक के सरकारी अस्पतालों में वर्ष 2008-09 में 25,508 सीजेरियन बच्चों का जन्म हुआ, जो वर्ष 2018-19 में बढ़कर एक लाख 37 हजार 244 के पार हो गया। निजी अस्पतालों के वर्ष 2008-09 के आंकड़ों के अनुसार 51,588 सीजेरियन बच्चों का जन्म हुआ। लेकिन वर्ष 2018-19 में दो लाख 25 हजार 528 सीजेरियन बच्चों ने जन्म लिया।
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक सरकारी चिकित्सक ने बताया कि सरकार प्राकृतिक प्रसव (Natural Delivery) के लिए अपने चिकित्सकों को कुछ भी नहीं देती है। सर्जरी के लिए पैसे दिए जाते हैं। सरकारी अस्पतालों में सी-सेक्शन के मामले बढऩे का यह भी एक कारण हो सकता है। लेकिन मेडिकल जरूरतों को छोड़ दें तो प्रसूता और परिजनों की सी-सेक्शन की एक चाहत सबसे बड़ा कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों के अनुसार आपातकालीन स्थिति या जटिल मामलों में ही सी-सेक्शन होना चाहिए। लेकिन 10 में से छह प्रसूता प्रसव पीड़ा से बचने के लिए सी-सेक्शन की मांग करती हैं, परामर्श और हौसला बढ़ाने के बावजूद रिश्तेदार भी साथ देते हैं।
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. हेमा दिवाकर का भी कहना है कि खुद से सीजेरियन की मांग करने वाले परिवारों की संख्या बढ़ी है। एकल परिवारों में यह समस्या ज्यादा है। आधुनिक जीवनशैली, देर से बच्चा या फिर अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी सी-सेक्शन के कारण हैं। सी-सेक्शन के हर मामले के लिए चिकित्सकों को जिम्मेदार ठहराना न्यायसंगत नहीं है।
आपातकालीन स्थिति में मां और शिशु दोनों की जान बचाने के लिए सी-सेक्शन जरूरी होता है। कोख में शिशु अगर उल्टा हो तब भी सी-सेक्शन ही उपाय है। हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता की सी-सेक्शन अस्पतालों के लिए लाभ कमाने का एक जरिया भी है। सामान्य प्रसव में जहां 20-25 हजार खर्च होते हैं वही बेंगलूरु (Bengaluru) जैसे शहर में सीजेरियन प्रसव का खर्चा 70 हजार रुपए से डेढ़ लाख रुपए तक होता है।
तथ्य ये भी
वर्ष 2008-09 के आंकड़ों के अनुसार देश के सरकारी अस्पतालों में कुल 73.13 लाख बच्चों का जन्म हुआ। इनमें से 4.61 लाख सीजेरियन बच्चे थे, जबकि वर्ष 2008-09 के दौरान निजी अस्पतालों में करीब 4 लाख सीजेरियन बच्चों का जन्म हुआ। वर्ष 2018-19 में ऐसे बच्चों
की संख्या बढ़कर 20 लाख हो गई।