शहर के निवासी दत्तात्रेय तथा बेंगलूरु पर्यावरण ट्रस्ट की ओर दायर जनहित याचिका की सुनवाई के पश्चात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एएस ओक के नेतृत्ववाली पीठ ने निर्देश दिए हैं। अदालत ने स्पष्ट किया है कि कर्नाटक पेड़ सुरक्षा कानून 1976 के तहत शहर में पेड़ों की गणना करना महानगर पालिका का दायित्व है, लेकिन वह यह दायित्व निभाने में विफल रही है।
हलफनामा दिया था अदालत में
मुख्य न्यायाधीश के अनुसार राज्य में यह कानून अस्तित्व में आए 43 वर्ष का समय गुजर चुका है, फिर भी महानगर पालिका शहर में पेड़ों की गणना करने में विफल रही है। जुलाई में भी बीबीएमपी को पेड़ों की गणना करने के निर्देश दिए गए। तब 10 अगस्त को बीबीएमपी ने पेड़ों की गणना का कार्य एक माह में शुरू करने का हलफनामा अदालत में सौंपा था। इसके बावजूद बीबीएमपी ने कोई कार्रवाई नहीं की है।
अब शहर में हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि बीबीएमपी प्रशासन को ही इस बात का पता नहीं है कि शहर में कितने पेड़ हैं। संख्या की जानकारी नहीं होने पर से शहर में पेड़ों की कटाई जारी है। परिणामस्वरूप शहर का ग्रीन बेल्ट लगातार सिकुड़ता जा रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार शहर ने कथित विकास की आंधी में 78 फीसदी हरियाली खो दी है। बुनियादी ढांचे के विकास के लिए पेड़ काटे जा रहे हैं, लेकिन इसके अनुपात में पौधरोपण नहीं किया जा रहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 21 नवम्बर को होगी।