scriptकोविड-19 से निपटने आइआइएससी तैयार कर रहा टीका | A recombinant subunit vaccine for SARS-CoV-2 | Patrika News
बैंगलोर

कोविड-19 से निपटने आइआइएससी तैयार कर रहा टीका

जानवरों पर परीक्षण शुरू, एक साल में क्लीनिकल परीक्षण की उम्मीद

बैंगलोरApr 16, 2020 / 05:10 pm

Rajeev Mishra

iisc_covid.jpg
बेंगलूरु.
भारतीय विज्ञान संस्थान (आइआइएससी) में शोधकर्ताओं की एक टीम घातक कोविड-19 को निष्प्रभावी बनाने के लिए टीके का विकास कर रही है। प्रयोग अभी प्रथम चरण में है लेकिन, कोविड-19 से व्युत्पन्न स्पाइक-एस-प्रोटीन का परीक्षण जानवरों पर शुरू हो गया है। शोध कर रही टीम के एक सदस्य ने कहा कि उम्मीद है एक से डेढ़ साल में यह टीका तैयार हो जाएगा।
दरअसल, कोविड-19 सार्स कोरोनावायरस-2 (सार्स-सीओवी-2) द्वारा उत्पन्न होता है और इसका परिणाम कई मौतों के रूप में सामने आ रहा है। हालांकि, बड़ी संख्या में संक्रमित व्यक्ति बिना किसी विशिष्ट उपचार के भी ठीक हो रहे हैं। ऐसा वायरस के हमले की प्रतिक्रिया स्वरूप शरीर के भीतर उत्पादित एंटीबाडीज के कारण होता है। पिछले कई वर्षों से संक्रमण से ठीक हो चुके रोगियों के प्लाज्मा से प्राप्त एंटीबाडीज के निष्क्रीय हस्तांतरण का उपयोग डिप्थीरिया, टिटनेस, रैबीज एवं इबोला जैसी अनगिनत बीमारियों के उपचार में हुआ है। कोविड-19 से निपटने के लिए भी ऐसे ही उपचारात्मक एंटीबॉडीज को डीएनए आधारित रिकाम्बीनेंट (पुनर्संयोजक) प्रौद्योगिकियों द्वारा प्रयोगशाला में उत्पादित किया जा सकता है जिसके प्रयास वैश्विक स्तर पर हो रहे हैं।
टीके का तीव्र उत्पादन संभव
भारत में भी ऐसा ही एक प्रयास आइआइएससी में शोधकर्ताओं की एक टीम कर रही है। इस टीम का नेतृत्व जाने-माने जीवविज्ञानी प्रोफेसर राघवन वरदराजन कर रहे हैं। प्रोफेसर राघवन प्रोटीन संरचना में अपने नवीनतम शोध के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने घातक इंफ्लूएंजा एचआइवी-1 के उपचार के लिए टीके एवं दवाइयों के विकास में भी अहम योगदान किया था। आइआइएससी ने कहा है कि प्रोफेसर राघवन के नेतृत्व में एक टीम कोरोनावायरस-2 (सार्स-सीओवी-2) से उत्पन्न कोविड-19 के उपचार के लिए एक रिकाम्बीनेंट सबयूनिट वैक्सीन (पुनर्संयोजक टीका) विकसित करने में जुटी है। टीम का लक्ष्य एक ऐसा टीका विकसित करने पर है जिसका उत्पादन तीव्र गति से हो सके। यह उन स्वास्थ्यकर्मियों, उम्रदराज लोगों, डायबिटीज या हृदय रोगियों के लिए उपयोगी साबित होगा जिनपर इस बीमारी का जोखिम सबसे अधिक है। आइआइएससी ने कहा है कि टीकाकरण के जरिए उन लोगों को सुरक्षा दी जानी चाहिए जिनपर इस बीमारी के संक्रमण का खतरा सबसे अधिक है।
10 करोड़ डोज की होगी जरूरत
आइआइएससी ने कहा है कि पिछले अध्ययनों से पता चला है कि स्पाइक ग्लाइकोप्रोटीन के खिलाफ 2003-सार्स-कोव-वायरस की सतह पर पाया गया एंटीबॉडीज कोशिका कल्चर को संक्रमित करने से रोकता है और जानवरों में संक्रमण के खिलाफ एक सुरक्षा प्रदान करता है। इसलिए टीके में मुख्य कारक के तौर पर सार्स-कोव-2 के स्पाइक ग्लाइकोप्रोटीन के विविध स्वरूपों की डिजाइनिंग एवं परीक्षण का प्रयास हो रहा है। आइआइएससी में स्पाइक प्रोटीन (कोविड-19 का प्रोटीन) से व्युत्पन्न कई प्रोटीन (अणुओं) की डिजाइनिंग की गई है और उनकी विशेषताओं का परीक्षण किया गया है। आइआइएससी द्वारा ही समर्थिक एक स्टार्टअप कंपनी मीनवैक्स में इसका परीक्षण जानवरों पर किया जा रहा है। जानवरों पर जो डिजाइन सर्वश्रेष्ठ परिणाम देगा उसे उत्पादन तकनीक में उन्नत किया जाएगा। इसके बाद यह सुरक्षा और विषाक्तता परीक्षण के दौर से गुजरेगा। उसके पश्चात पहले चरण के क्लीनिकल परीक्षण के लिए जीएमपी विनिर्माण (एक विशेष बुनियादी गुणवत्ता के आधार पर विनिर्माण) के लिए भेजा जाएगा। शोध टीम का मानना है कि अगर देश में यह संक्रमण लंबे समय तक जारी रहता है तो कम-से-कम 10 करोड़ डोज (खुराक) की आवश्यकता होगी।
समय-सीमा
पहली पीढ़ी का वैक्सीन 3 महीने में तैयार होगा
उत्पादन प्रौद्योगिकी 8 महीने में विकसित होगी
मनुष्यों पर पहले चरण का क्लीनिकल परीक्षण 12 महीने में शुरु होगा
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो