scriptकोई ग्रामीण चिकित्सक, कोई बाल कलाकार, कोई शिक्षक तो कोई नि:शक्त | A rural doctor, a child artist, a teacher and a differently abled | Patrika News

कोई ग्रामीण चिकित्सक, कोई बाल कलाकार, कोई शिक्षक तो कोई नि:शक्त

locationबैंगलोरPublished: Aug 06, 2020 09:27:53 pm

Submitted by:

Nikhil Kumar

-कड़ी मेहनत से मिली सफलता
-यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा

बेंगलूरु. कोई शिक्षक, कोई पूर्व बाल कलाकार, कोई नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआइयू) का पूर्व छात्र, कोई चिकित्सक, कोई इंजीनियर तो कोई डिफरेंटली एबल्ड (अन्यथा सक्षम)। ये उन 40 लोगों में से हैं जिन्होंने संघ लोग सेवा आयोग (Union Public Service Commission – यूपीएससी) की ओर से आयोजित सिविल सेवा परीक्षा 2019 में परचम लहाराया है। ज्यादातर लोग ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। लेकिन कड़ी मेहनत, आत्मविश्वास और लगन ने सपनों को पंख लगा दिए।

15 वर्ष की उम्र में खोई आंखों की रोशनी

दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी के कारण 15 वर्ष की उम्र में आंखों की 70 फीसदी रोशनी खो चुकी 25 वर्षीय मेघना के. टी. ने बीच में ही 12वीं की पढ़ाई छोड़ दी। लेकिन, माता-पिता के प्रोत्साहन पर पढ़ाई जारी रही। सिविल सेवा परीक्षा में मेघना को देश में 465वीं रैंक मिली। पिछली बार पांच अंकों से मेघना रैंक हासिल नहीं कर सकी थीं। स्क्राइब की मदद से वे परीक्षा में शामिल हुईं।

मेघना ने बताया कि दसवीं कक्षा में होने के दौरान आंखों की रोशनी कम होने लगी। 12वीं में उन्होंने विज्ञान चुना लेकिन पढऩा आसान नहीं था और पढ़ाई छोड़ दी। माता-पिता ने हौसला बढ़ाया। तीन माह बाद उन्होंने कला विषय चुना और पढ़ाई शुरू कर दी। मेघना की मां पढऩे में मदद करती थीं। इसके बाद ब्रेल सीखा। लेक्चर रिकॉर्ड कर वापस घर में सुनती थीं। सुराण कॉलेज से बीए में स्नातक करने के बाद कुछ समय के लिए उन्होंने एक निजी कंपनी में काम किया। कर्नाटक प्रशासनिक सेवा में परचम लहराया लेकिन सपना था यूपीएससी (UPSC) परीक्षा पास करना। जो अब पूरा हो गया।

दूसरे प्रयास में मिली सफलता

नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआइयू) से स्नातक जयदेव सी. एस. ने देश में पांचवां स्थान प्राप्त किया है। जयदेव ने बताया कि वे हमेशा से सार्वजनिक क्षेत्र में काम करना चाहते हैं। एनएलएसआइयू में पढ़ाई के दौरान कानून व प्रशासन जैसे विषयों की अच्छी समझ परीक्षा व साक्षात्कार में काम आई। स्नातक की पढ़ाई के बाद घर लौट यूपीएससी की तैयारी में जुट गए थे और मेहनत रंग लाई। कर्नाटक से होने के कारण उनकी इच्छा यहीं के लोगों के लिए काम करने की है। दूसरे प्रयास में सफलता हाथ लगी।

आइएएस बनने के लिए विदेश में नौकरी छोड़ी

हासन जिले के दर्शन कुमार एच.जी. को 594वीं रैंक हासिल हुई और कन्नड़ भाषा में परीक्षा देने वाले वे कर्नाटक से एक मात्र परीक्षार्थी हैं। अरसीकेरे तालुक में हरलीकट्टा के मूल निवासी दर्शन ने चिक्कमगलूरु के एक कॉलेज से मेकैनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। इसके बाद बेंगलूरु के दयानंद सागर इंजीनियरिंग कॉलेज से स्नातक हुएं। छह वर्षों तक इंफोसिस में काम करते रहे। अमरीका में दो प्रोजेक्ट करने के बाद आएएएस अधिकारी बनने का सपना पूरा करने के लिए नौकरी छोड़ लौट आए और चौथे तीसरे प्रयास में सफलता मिली। इससे पहले दोनों बार उन्होंने अंग्रेजी भाषा में परीक्षा दी थी।

ये दो चिकित्सक भी रहे कामयाब
मंड्या के एम. जे. अभिषेक गौड़ा (278 रैंक) और कोलार के एन. विवेक रेड्डी (485 रैंक) चिकित्सक हैं। डॉ. गौड़ा ने बताया कि 10वीं तक की पढ़ाई गांव के ही सरकारी स्कूल में कन्नड़ भाषा में हुई। मेहनत से चिकित्सक बने लेकिन सपना तो यूपीएससी परीक्षा पास करना था। नौकरी के तीन वर्ष के दौरान परीक्षा की तैयारी भी करते रहे।

इसी तरह कोलार जिले में श्रीनिवासपुर तालुक के डॉ. रेड्डी ने भी ग्रामीण क्षेत्र से होने के बावजूद खुद को किसी से कम नहीं समझा। पूरी मेहनत और लगन से परीक्षा की तैयारी की। फिलहाल वे राष्ट्रीय मानसिक आरोग्य व स्नायु विज्ञान संस्थान (निम्हांस) में कनिष्ठ सहायक के पद पर हैं।
रेड्डी और गौड़ा को तैयारी में मदद करने वाले मंड्या जिलाधिकारी एम. वी. वेंकेटेश ने बताया कि दोनों की सफलता गांव के विद्यार्थियों के लिए मिसाल है।

बाल पुरस्कार विजेता का सपना पूरा

32 फिल्म, 48 कन्नड़ नाटक और वर्ष 2005 के लिए राष्ट्रीय बाल पुरस्कार जीतने वाली नंदिनी लेआउट की कीर्तन एच. एस. (167 रैंक) को दूसरे प्रयास में सफलता हाथ लगी। करीब छह वर्ष पहले पिता को खो चुकी कीर्तन तुमकूरु जिले के कुणिगल तालुक में होसकेरे गांव की मूल निवासी है। कीर्तन ने बताया कि उनके पिता चाहते थे कि वह आइएएस या आइपीएस अधिकारी बने। फिलहाल वे कर्नाटक प्रशासनिक सेवा अधिकारी हैं और बतौर विशेष अधिकारी कोविड -19 ड्यूटी पर हैं।

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