इन पहाड़ियों और धान के खेतों-खलिहानों के बीच उन्होंने अपनी जान पर खेलकर क्रूर अंग्रेजों को चुनौती दी और चुनौती भी ऐसी की सरकार हिल गई। देश को आजादी तो 1947 में मिली। लेकिन, मेरे पुत्रों ने अगस्त 1942 में ही अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और यहां एक सरकार का गठन कर दिया।
दरअसल, अंग्रेजी हुकूमत ने कर इतना बढ़ा दिया था कि किसानों का जीना मुश्किल हो गया। तब मेरे पुत्रों ने एक स्वर में कर का भुगतान नहीं करने और अपनी सरकार के गठन की घोषणा कर दी थी। तिरंगा झंडा भी फहराया गया था।
नहीं, नहीं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं। उस समय देशप्रेम का जज्बा ही ऐसा था। और फिर इन पहाड़ियों की हवाओं में सांस लेने वाले लोग निडर होते ही हैं। आगे तो सुनिए। वह दृश्य मैं आज भी नहीं भूला हूं।
मेरे कानों में उनकी चीखें आज भी गूंजती हैं। यहीं गिरा था उनका खून। ठहरिए! मैं जरा इस माटी का अपने माथे पर तिलक लगा लेता हूं। ब्रिटिश प्रशासन ने पांच विद्रोहियों गुरप्पा, मलप्पा, सूर्यनारायणचार, हलप्पा और शंकरप्पा को गिरफ्तार किया और दो ब्रिटिश अधिकारियों की मौत में उनकी भूमिका के लिए मौत की सजा सुनाई, जबकि तीन महिलाओं को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
गांव की आजाद सरकार में थे दो बच्चे भी गांव के युवकों ने गांधी टोपी पहनी और वीरभद्रेश्वर मंदिर पर तिरंगा झंडा फहराया। उन्होंने गांव के बाहर सरकार के गैर-जिम्मेदार अधिकारियों को गांव में प्रवेश न करने की चेतावनी देते हुए तख्तियां भी लगा दीं। सरकार में दो 16 साल के बच्चे-जयन्ना और मलपय्या शामिल हुए। जयन्ना को तहसीलदार नियुक्त किया गया और मलपय्या को उप-निरीक्षक बनाया गया। इनकी नियुक्ति का एक कारण यह भी था कि दोनों किशोर थे और इन्हें जेल नहीं हो सकती थी। इस योजना में मुख्य भूमिका निभाने वाले बसवनप्पा ने प्रशासन की पूर्ण अवज्ञा में गांव के लिए नियम बनाए।
आखिरकार, करों का भुगतान न करने के लिए मेरे खिलाफ शिकायत दर्ज की गई और स्थिति को संभालने के लिए एक तहसीलदार, उप-निरीक्षक और आठ पुलिसकर्मियों सहित 10 अधिकारियों को भेजा गया। उस मंदिर के पास, वहां पर, खुले मैदान में भीड़ जमा हो गई थी। देशभक्ति का जज्बा ऐसा था कि मेरे पुत्रों ने तहसीलदार और उपनिरीक्षक को गांधी टोपी पहनने के लिए मजबूर किया। हालात से घबराकर केंचेगौड़ा ने हवा में कुछ गोलियां चलाईं। गोलियां चलते ही मेरे पुत्रों का जोश चरम पर पहुंच गया। भारत माता की जय बोलते हुए उन्होंने दो अधिकारियों को वहीं पर धूल चटा दी।
अब इसके बाद की कहानी दिल दहलाने वाली है।
अब इसके बाद की कहानी दिल दहलाने वाली है।
अधिकारियों की मौत के बाद ब्रिटिश प्रशासन आग-बबूला हो गया। उन्होंने विद्रोह को कुचलने के लिए चार दिन बाद सेना भेजी और इन सरकारी सैनिकों ने स्थानीय लोगों के खिलाफ क्या नहीं किया। जो लोग भागने में सफल रहे, वे जंगलों में छिप गए। जो नहीं भाग पाए उनके साथ बहुत बुरा हुआ। लूटपाट, आगजनी और अत्याचार की पराकाष्ठा। मत पूछिए।
हंसते-हंसते चूमा फांसी का फंदा हमारे यहां हुए विद्रोह की खबर सुनकर तत्कालीन मैसूर महाराजा जयचामराजा वाडियार ने कहा था, एसुरु कोट्टारू इस्सुरु कोदेवु। इसका अर्थ है हम आपको कई गांव देंगे। लेकिन, इस्सुरु नहीं। वाडियार ने कुछ लोगों की सजा कम करवाई। लेकिन, मेरे पांच बेटों को फांसी हुई। उन्होंने खुशी-खुशी फांसी का फंदा चूम लिया था और वतन पर कुर्बान हो गए। मैं आज भी इस माटी का तिलक करता हूं,क्योंकि इसी जमीन पर वे चले और पले-बढ़े थे। युवाओं से कहना चाहता हूं कि आजादी का जश्न मनाइए। लेकिन, अपने पुरखों के बलिदान को मत भूलिए।