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बैंगलोर

आदमी का जैसा कर्म, वैसा ही फल

आचार्य महाश्रमण ने संबोधि ग्रंथ के तीसरे अध्याय के अंतिम तीन श्लोक का विवेचन करते हुए कहा कि इन तीनों श्लोकों में जो बताया गया है वह है कि प्राणी अपने कर्मों से भोगता हुआ जन्म भी लेता है और फिर मर जाता है।

बैंगलोरOct 09, 2019 / 10:18 pm

Santosh kumar Pandey

आदमी का जैसा कर्म, वैसा ही फल

आदमी का जैसा कर्म, वैसा ही फल

बेंगलूरु. आचार्य महाश्रमण ने संबोधि ग्रंथ के तीसरे अध्याय के अंतिम तीन श्लोक का विवेचन करते हुए कहा कि इन तीनों श्लोकों में जो बताया गया है वह है कि प्राणी अपने कर्मों से भोगता हुआ जन्म भी लेता है और फिर मर जाता है। जो वंचित रहता है उसकी प्रधानता नहीं कर्म की प्रधानता है। मैं जो चाहूं वह हो जाए यह जरूरी नहीं। जैसा कर्म है, भोगता है। आदमी खुद अपना नुकसान या भला करता है।
आत्मा पाप कर्म द्वारा जितना नुकसान करती है उतना नुकसान तो एक आदमी दूसरे आदमी का कंठ काट दे तो भी नहीं होता। पाप कर्म करने वाली आत्मा दुरात्मा होती है। परमात्मा तो वह है जो मोक्ष को प्राप्त करती है। महात्मा वह है जो साधुत्व ग्रहण कर साधना करने वाली है। परमात्मा या महात्मा कोई बने या न बने पर कम से कम दुरात्मा तो न बने। पापों में रत न रहो। सदात्मा बनो ,सज्जन बनो। सदाचार पर चलने वाला बनो। झूठ कपट से दूर होकर अणुव्रती श्रावक बनो। दुरात्मा अहित करने वाली, नुकसान करने वाली होती है।
महात्मा महाप्रज्ञ का विवेचन करते हुए महाश्रमण ने महाप्रज्ञ के आशु-काव्य, व्यापक अध्ययन, व्यापक क्षेत्र में चिंतन आदि प्रसंगों को विस्तार से समझाया। तीन दिवसीय ज्ञानशाला राष्ट्रीय प्रशिक्षक प्रशिक्षण शिविर के समापन पर कहा कि ज्ञानशाला तेरापंथी महासभा के तत्वावधान में बाल पीढ़ी के संस्कार निर्माण का उपयोगी उपक्रम है। साध्वी वर्या ने संसार भावना के बारे में बताया।
ज्ञानशाला प्रध्यापक डालम चंद नौलखा ने शिविर की उपयोगिता के संदर्भ में बताया। स्थानीय तेरापंथ सभा के मंत्री प्रकाश लोढ़ा ने विचार व्यक्त किए। व्यवस्था समिति की ओर से डालमचंद नौलखा का सम्मान किया गया। बहादुर सिंह सेठिया ने गीतिका का प्रस्तुत की। संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।

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