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आचार्य महाश्रमण से विजयनगर आने की गुहार

locationबैंगलोरPublished: Sep 27, 2018 12:33:23 am

Submitted by:

arun Kumar

श्रावक श्राविकाओं ने अनेक साधु साध्वियों के दर्शन किए

Acharya Mahasaman to visit Vijayanagara

Acharya Mahasaman to visit Vijayanagara


बेंगलूरु. तेरापंथी सभा विजयनगर श्रावक संघ के 151 श्रद्धालुओं ने चेन्नई में आचार्य महाश्रमण के दर्शन किए। यह संघ 21 सितम्बर को अर्हम भवन में साध्वी मधुस्मिता से मंगल पाठ सुनकर रवाना हुआ था। संघ सोमवार वापस बेंगलूरु पहुंचा। विजयनगर श्रावक समाज ने वहां आचार्य से ‘गुरुदेव म्हे विजयनगर स्यूं आया हां, विजयनगर श्रावक-श्राविका समाज आपरा स्वागत री बाट जोवता हैंÓ गुरु दर्शन के लिए पधारें। सभा के अध्यक्ष बंसीलाल पितलिया ने आचार्य को सभा की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। आचार्य ने मंगल पाठ सुना कर सबको आशीर्वाद दिया। श्रावक श्राविकाओं ने साध्वी कनकप्रभा, मुख्य मुनि, साध्वीवर्या सहित अनेक साधु साध्वियों के दर्शन किए। संघ में संयोजक अशोक पितलिया, पन्नालाल लूणिया, जयंतीलाल बोहरा, शंकरलाल हिरण, सुभाष पोखरना, सुरेश मांडोत तथा उत्तम बागरेचा का योगदान रहा। मंत्री कमल तांतेड़ भी उपस्थिति थे।
मानव का दिव्य गुण मध्यस्थता करना

बेंगलूरु. वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ फ्रेजर टाउन के तत्वावधान में आयोजित धर्मसभा में साध्वी निधि ज्योति ने कहा कि श्रावक का ग्यारवां गुण मध्यस्थता संसार में दुखों का कारण है।
राग-द्वेष जो श्रावक अपनी विचार धारा को ऐसी बना लेता है कि वह प्रिय वस्तुओं में राग द्वेष करता है। वहीं मध्यस्थता गुण से युक्त होता है।
प्रेम व्यक्ति का सुखकर मित्र

बेंगलूरु. शांतिनगर जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ की ओर से आयोजित धर्मसभा में आचार्य महेन्द्र सागर ने कहा कि प्रे्रम व्यक्ति के जीवन का सबसे सुखकर मित्र है। जबकि क्रोध व्यक्ति के जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है। यह सफलता का बाधक है। क्रोध का संबधों पर तो प्रभाव पड़ता ही है इसके साथ ही स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है। क्रोध के कारण विवेक के दरवाजे बंद हो जाते हैं। क्रोधी की वाणी को ग्रहण लग जाता है। वह भूल जाता है कि उसके बोलने का परिणाम कितना बुरा हो सकता है। क्रोधी को क्रोध के पलों में कुछ दिखाई नहीं देता है। जब क्रोध की तासीर कम होती है, तब तक सब कुछ गंवा चुका होता है। इसलिए क्रोध करने के बाद पछतावे के अलावा कुछ नहीं बचता है। क्रोध के समय व्यक्ति के शरीर में जहर उत्पन्न हो जाता है। इसलिए कहा जाता है कि माताएं क्रोधावस्था में बच्चे को अपना दूध नहीं पिलाएं। क्रोध मन की शांति को खंडित करता है। इसलिए क्रोध को अनर्थ की जड़ समझो। भगवान महावीर ने क्रोध को घुन की उपमा दी है। जैसे घुन से धन्य खोखला हो जाता है, उसी प्रकार क्रोध से संबंध, प्रेम, स्वास्थ्य और इसमें आगे आत्म गुण नष्ट हो जाते हैं।
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