आचार्य ने कहा कि ये बालक-बालिकाएं नए पौध के समान हैं। जिस समाज के बच्चे और युवा अच्छे होते हैं। उस समाज का और राष्ट्र का भविष्य भी अच्छा हो सकता है। ज्ञानशाला के माध्यम से बच्चों को अच्छे संस्कार मिल रहे हैं। बच्चों पर ध्यान देना अच्छा होता है। बच्चों को नमस्कार महामंत्र याद हो और उसका वे जप भी करें तो इससे उनका आध्यात्मिक विकास भी हो सकता है।
आचार्य ने कहा कि भौतिकता के माहौल में उनमें आध्यात्मिकता भी रहे तो कुछ संतुलन की बात हो सकती है। बच्चे कहीं भी मांसाहार से दूर रहें, नशे की बुराइयों से बचे रहें तो उनका जीवन अच्छा हो सकता है। यह सारा दृश्य रविवार को आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ ज्ञान चेतना सेवा केन्द्र में बने ‘महाश्रमण समवसरण’ में देखने को मिला।
आचार्य ने ‘सम्बोधि’ आधारित प्रवचनमाला में कहा कि भगवान महावीर के राजगृह प्रवास के दौरान अनेक लोग सम्पर्क में आ रहे थे। भगवान महावीर से एक युवक का सम्पर्क हुआ। वह युवक राजा का लडक़ा था। अपने राज्य के लोगों से जानकारी प्राप्त होने पर वह भी भगवान महावीर के पास पहुंचा था। उन्होंने कहा कि उसने भगवान महावीर की वाणी को सुना और प्रभावित हो गया। उसके भीतर वैराग्य की भावना जागृत हो गई।
उन्होंने कहा कि प्रतिदिन हजारों लोग प्रवचन सुनते हैं, किन्तु प्रवचन का प्रभाव पात्रता के अनुसार पड़ता है। जैसे यदि पात्र साफ हो तो जल निर्मल रहता है और पात्र गंदा हो तो निर्मल जल भी गंदा हो जाता है।
ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने गीत का संगान किया। तेरापंथ युवक परिषद-राजाजीनगर के अध्यक्ष प्रवीण दक, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष विमल कटारिया, सतीश पोकरणा व ज्ञानशाला संयोजिका नीता गादिया ने अपनी विचार व्यक्त किए।
इस दौरान जैन विश्व भारती को प्रकाश लोढ़ा परिवार द्वारा साहित्य वाहन भेंट किया गया। इसकी प्रतीकात्मक चाबी प्रकाश लोढ़ा ने जैन विश्व भारती के पूर्व अध्यक्ष धर्मीचंद लुंकड़, बेंगलूरु चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष मूलचंद नाहर को भेंट की।