छत्रसिंह मालू, सुवालाल चावत,चांदमल रांका, सूर्यप्रकाश तातेड़, बरखा पुगलिया, सुमन कोठारी, संतोष बोथरा एवं वंदना तातेड़ ने गीतिका द्वारा भावनाएं व्यक्त कीं। साध्वी मधुस्मिता ने कहा कि आचार्य तुलसी एक ऐसा नाम है, जिसके अधरों पर आते ही हाथों की अंजली बन जाती है, लाखों शेर एक साथ झुक जाते हैं, आस्था के दीप प्रज्वलित हो जाते हैं, अंतर्मन में भावों की घटा उमड़ आती है।
जब भारत स्वतंत्र हुआ तब अनेक प्रकार का भौतिक और आर्थिक विकास परीलक्षित हुआ, किंतु इंसानियत की रोशनी फीकी नजर आ रही थी। आचार्य तुलसी उपासक थे, समाधायक थे। उन्होंने इस समस्या का समाधान निकाला। वह समाधान है अणुव्रत। सूरज की रश्मियां, चांद की चांदनी और वर्षा के पानी की तरह अणुव्रत मानव मात्र के लिए उपयोगी है।
साध्वी स्वस्थ प्रभा एवं साध्वी सहजयशा ने भी विचार व्यक्त किए। दीपावली के अवसर पर आध्यात्मिक लकी विजेताओं के नामों की भी घोषणा की गई। इसमें प्रथम सीमा दूधोडिय़ा, द्वितीय सुमन मेहता, तृतीय प्रेक्षा दुगड़ रही।
इन्हें सभा की ओर से सम्मानित किया गया। संचालन सभा सचिव कमल तातेड़ ने किया। आभार सभा उपाध्यक्ष हीरालाल मांडोत ने जताया।