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अनन्य आस्था के केन्द्र थे आचार्य शुभचन्द्र

locationबैंगलोरPublished: Sep 12, 2018 10:43:25 pm

जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में महावीर धर्मशाला में मंगलवार को गुणानुवाद सभा में जयधुरन्धर मुनि ने कहा कि आचार्य शुभचंद्र सर्वसंप्रदाय व समुदाय के लोगों के बीच विशेष श्रद्धा एवं अनन्य आस्था के केंद्र थे।

अनन्य आस्था के केन्द्र थे आचार्य शुभचन्द्र

अनन्य आस्था के केन्द्र थे आचार्य शुभचन्द्र

बेंगलूरु. जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में महावीर धर्मशाला में मंगलवार को गुणानुवाद सभा में जयधुरन्धर मुनि ने कहा कि आचार्य शुभचंद्र सर्वसंप्रदाय व समुदाय के लोगों के बीच विशेष श्रद्धा एवं अनन्य आस्था के केंद्र थे। उन्होंने कहा कि आचार्य का जीवन सरलता, सादगी और संयम का त्रिवेणी संगम था। अपने नाम के अनुसार ही उनका आचरण, चिंतन, मनन, वाणी, व्यवहार शुभमय था।


वे हर पल स्वाध्याय एवं अनुपे्रक्षा में रत रहते हुए शुभ भावों में रमण करते थे। वे भले ही एक संप्रदाय के आचार्य थे, परंतु संपूर्ण जैन समाज में अग्रण्य स्थान रखते हुए अपनी उदारता, स्नेह वात्सल्य, नम्रता, सहजता से सभी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे। उनके व्यक्तित्व में ऐसा चुम्बकीय आकर्षण था कि जो व्यक्तित्व एक बार उनके सान्निध्य को प्राप्त कर लेता वह हमेशा के लिए उनका परम भक्त बन जाता था।


सभा में जयमल जैन महिला मंडल, बहु मंडल एवं विमल जांगड़ा ने गीतिका प्रस्तुत की। इस अवसर पर ऑल इंडिया जैन कॉन्फ्रेंस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष केसरीमल बुरड़, प्रांतीय अध्यक्ष सुरेश छल्लाणी, मरुधर केसरी जैन गुरु सेवा समिति के अध्यक्ष उत्तमचंद रातडिय़ा, रत्न हितैषी श्रावक संघ अध्यक्ष पदमराज मेहता, साधुमार्गी जैन संघ अध्यक्ष शांतिलाल सांड, प्राज्ञ संघ के अध्यक्ष जयसिंह बिलवाडिय़ा, विजयनगर संघ के मंत्री शांतिलाल लोढ़ा, हनमंतनगर संघ के उत्तम बोहरा, सज्जनराज रुणवाल, रोशन बाफना, त्यागराजनगर जैन युवा संगठन के अध्यक्ष भरत रांका, संघ अध्यक्ष नेमीचंद कामदार, मुनिरेड्डी पाल्या संघ अध्यक्ष मांगीलाल जांगड़ा सहित अनेक संघ संस्थाओं के पदाधिकारी एवं प्रतिनिधि उपस्थित थे। अनेक वक्ताओं ने श्रद्धांजलि के रूप में अपने भाव व्यक्त किए।


संयम साधना की सौरभ से सुगंधित थे आचार्य
बेंगलूरु. विजयनगर स्थानक में साध्वी मणिप्रभा ने कहा कि उद्यान में कई प्रकार के पुष्प होते हैं, जो अलग-अलग वर्णों से सुशोभित होते हैं। उन पुष्पों में कई पुष्प सुगंधित होते हैं तो कई देखने में सुदर लगते हैं। कई सुंदर और सुगंधित भी होते हैं, तो कई न तो दिखते सुंदर हंै और न सुगंधित होते हैं।

परंतु, आचार्य शुभचंद्र दिखने में भी सुंदर थे और उनका जीवन गुणों से, सेवा से, परोपकार से, संयम साधना की सौरभ से सुगंधित था। आचार्य ने जीवन में रत्नत्रय की अपूर्व आभा आलोकित की। आत्मा को शुभत्व की ओर ले जाकर अक्षम आनंद को अपने जीवन से दूर किया। उनके सदाचरण के प्रभाव से बाल, युवा, वृद्ध सभी प्रभावित थे। प्रसन्नता की महक उनके मुख मंडल पर सदा प्रसारित रहती थी। सभा का संचालन अशोक संचेती ने किया।

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