उन्होंने कहा कि हम सभी को अपना जीवन हमेशा श्रद्धा, समर्पण और विवेक के साथ जीना चाहिए। जो विनयशील होते हैं वह अपना जीवन तर्क में नहीं समर्पण में जीते हैं। संसार में तीन प्रकार की दृष्टि होती हैं। शास्त्र दृष्टि, गुरु दृष्टि और अनुभव दृष्टि। शास्त्र दृष्टि हमें हेय-उपादेय की तरफ ले जाती है। हमारे शास्त्र ऋषि-मुनि और संत-संयमी द्वारा लिखे जाते हैं, जो हमें अच्छे-बुरे का ज्ञान कराते हैं।
गुरु हमेशा दु:ख के मार्ग से बचाकर सुख का मार्ग बताते हैं। इसी प्रकार एक दृष्टि अनुभव की होती है, जो बुजुर्गों के पास होती है। बुजुर्गों की सलाह से किया गया कार्य सदैव निर्विघ्न संपन्न होता है। जब बुजुर्गों का होश और युवाओं का जोश दोनों मिल जाते हैं, तो बड़े से बड़ा कार्य भी निर्विरोध-निर्विघ्न संपन्न होते हैं।
मुनि महापद्मसागर ने कहा कि हमें कभी भी बिना मेहनत की कोई वस्तु प्राप्त करने की कोशिश नहीं करना चाहिए।