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अब पता चला जाली है संबद्धता

locationबैंगलोरPublished: Jul 13, 2018 11:19:38 pm

Submitted by:

Rajendra Vyas

1500 विद्यार्थियों का भविष्य अधर में
कुलपति ने दिए जांच के आदेश

nursing college

अब पता चला जाली है संबद्धता

आरजीयूएचएस प्रशासन की नाक के नीचे वर्षों से चल रहा था बीथल नर्सिंग कॉलेज
बैंक ने खारिज किया शिक्षा ऋण का आवेदन, तब हुआ खुलासा
बेंगलूरु. राजीव गांधी स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (आरजीयू एचएस) प्रशासन के नाम के नीचे वर्षों से एक नर्सिंग कॉलेज कथित तौर पर चलता रहा। कॉलेज के कुछ विद्यार्थियों को बैंक ने जब यह बोल कर शिक्षा ऋण देने से मना कर दिया कि कॉलेज का संबद्धता प्रमाणपत्र नकली है, तब मामला उजागर हुआ। जिसके बाद आरजीयूएचएस के कुलपति ने जांच के आदेश दिए और कॉलेज प्रशासन से जवाब मांगा है।
मामला नंदिनी लेआउट स्थित बीथल इंस्टीट्यूट ऑफ नर्सिंग कॉलेज से जुड़ा है। कॉलेज में करीब 1500 विद्यार्थी पढ़ाई कर रहे हैं। संबद्धता नकली साबित होने पर उनका क्या होगा इस बारे में अभी आरजीयूएचएस प्रशासन ने कुछ नहीं कहा है। कॉलेज प्रशासन ने आरोपों को निराधार और खुद को निर्दोष साबित करने का दावा किया है। आरजीयूएचएस के कुलपति डॉ. सचिदानंद ने बताया कि कॉलेज ने विद्यार्थी को जो संबद्धता प्रमाणपत्र जारी किया था वो नकली है। संबद्धता प्रमाणपत्र पर कुलसचिव के रूप में उनके हस्ताक्षर हैं। जबकि प्रमाणपत्र जारी होने के दौरान वे कुलसचिव नहीं थे। आरजीयूएचएस की आंतरिक जांच समिति मामले की जांच करेगी। जिसके बाद मामले को सीआइडी को सौंपा जाएगा।
दरअसल कुछ विद्यार्थियों ने दाखिला लेने के बाद शिक्षा ऋण के लिए आवेदन किया था। लेकिन संबद्धता प्रमाणपत्र को नकली बताते हुए बैंक ने आवेदन रद्द कर दिया। जिसके बाद पीडि़त विद्यार्थी आरजीयूएचएस पहुंचे और हस्तक्षेप की मांग की। तब संबद्धता प्रमाणपत्र के नकली होने की बात सामने आई।
डॉ. सचिदानंद ने बताया कि यह पहला मौका नहीं है जब कॉलेज पर नकली दस्तावेज संबंधित आरोप लगे हों। इसी वर्ष मार्च में ईरान के एक छात्र ने कॉलेज पर उसे जाली मार्कशीट जारी करने का आरोप लगाया था। सीआइडी इस मामले की भी जांच कर रही है। इसके बाद आरजीयूएचएस ने कॉलेज को नए विद्यार्थियों को दाखिला नहीं देने के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद कॉलेज नहीं माना।
रुमेटोलॉजिस्टों की कमी से जूझ रहे मरीज
32 में से 25 शहर में
बेंगलूरु. जोड़ों के दर्द का इलाज करने वाले विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी के कारण मरीजों को इलाज नहीं मिल पा रहा।
रुमेटोलॉजिस्टों की बेहद कम संख्या होने से गठिया व इसके विभिन्न प्रकार के मरीज चिकित्सकों तक पहुंचने के लिए कई सप्ताह का इंतजार करने पर मजबूर हो रहे हैं। गठिया की 80 फीसदी मरीज महिलाएं हैं। प्रदेश में सिर्फ 32 रुमेटोलॉजिस्ट हैं और इनमें से 25 बेंगलूरु में ही हैं। प्रदेश में बाल रुमेटोलॉजिस्ट केवल पांच हैं, जिनमें से तीन बेंगलूरु में हैं।
विक्रम अस्पताल में इंस्टीट्यूट ऑफ रुमेटोलॉजी व क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग शुरू होने के अवसर पर गुरुवार को रुमेटोलॉजिस्ट डॉ. बी.जी. धर्मानंद ने कहा, चिकित्सकों और जांच सुविधाओं की कमी का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। बीमारी की पहचान में देरी हो रही है। देश में 500 के रुमेटोलॉजिस्ट हैं। जबकि जरूरत करीब 15000 की है। प्रशिक्षण केंद्रों की कमी इसकी बड़ी वजह है। अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. सोमेश मित्तल ने कहा, इंस्टीट्यूट खुलने से चिकित्सकों को प्रशिक्षित करने में मदद मिलेगी। अनुसंधान पर विशेष जोर दिया जाएगा।
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