इसरो ने कहा है कि पहले खरीफ सत्र के दौरान 120 दिनों में 4 या 5 चित्र ही मिलते थे लेकिन अब कम से कम 10 चित्र उपलब्ध होते हैं। इसरो निदेशक देवी प्रसाद कार्णिक ने बताया कि अर्थ ऑब्जर्वेशन उपग्रह धरती की एक परिक्रमा 90 मिनट में पूरी करते हैं। यानी, देश में किसी खास जगह से गुजरने के बाद उपग्रह को दोबारा वहां पहुंचने में 90 मिनट का समय लगना चाहिए परंतु धरती के गतिशील होने के कारण उस बिंदु तक फिर से पहुंचने में कई दिन लग जाते हैं। लेकिन, श्रृंखला में अगर अधिक उपग्रह हैं तो निगरानी में निरंतरता आती है। रिसोर्ससैट श्रृंखला के दो उपग्रहों की बदौलत अब हर फसल सत्र में 10 से 12 दिनों के अंतरला पर एक बार निगरानी हो जाती है। इससे पूरे देश में फसलों की स्थिति के बारे में सटीक आंकड़े मिलते हैं और पैदावार का अनुमान लगाना आसान हो गया है। पैदावार अनुमान के आधार पर एजेंसियां सरकार को सतर्क करती हैं और अगर किसी फसल के उत्पादन में गिरावट के पूर्वानुमान हैं तो जरूरतों का आकलन कर सरकार पहले से ही आयात की तैयारियां कर लेती है। इससे कीमतों और बाजार में स्थिरता आती है।
इसी तरह बागवानी फसलों, देश की नदियों, सिंचित और सूखा प्रभावित क्षेत्रों, वाटरशेड विकास परियोजनाओं, खनिजों, फसल बीमा और आपदा प्रबंधन सहित कई योजनाओं पर इन उपग्रहों की पैनी नजर है। चूंकि, रिसोर्ससैट उपग्रह अत्याधुनिक तकनीक से युक्त हैं इसलिए बादलों के होने के बावजूद इनसे प्राप्त त्रि-स्तरीय चित्र बेहद स्पष्ट होते हैं। देश में चल रही लगभग 8200 एकीकृत वाटरशेड परियोजनाओं (आईडब्ल्यूएमपी) की निगरानी के लिए जहां हर साल 2000 चित्रों की आवश्यकता है वहीं इसरो इन उपग्रहों से 2500 चित्र उपलब्ध करा रहा है। इन उपग्रहों का उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में भी बाढ़ के हालात पर नजर रखने और आपदा प्रबंधन में किया जा रहा है। इसरो ने कहा है कि उसके उपग्रहों की पैनी निगाह देश के 33 लाख वर्ग किमी भौगोलिक क्षेत्र में और ग्लेशियरों पर है।
इसी तरह बागवानी फसलों, देश की नदियों, सिंचित और सूखा प्रभावित क्षेत्रों, वाटरशेड विकास परियोजनाओं, खनिजों, फसल बीमा और आपदा प्रबंधन सहित कई योजनाओं पर इन उपग्रहों की पैनी नजर है। चूंकि, रिसोर्ससैट उपग्रह अत्याधुनिक तकनीक से युक्त हैं इसलिए बादलों के होने के बावजूद इनसे प्राप्त त्रि-स्तरीय चित्र बेहद स्पष्ट होते हैं। देश में चल रही लगभग 8200 एकीकृत वाटरशेड परियोजनाओं (आईडब्ल्यूएमपी) की निगरानी के लिए जहां हर साल 2000 चित्रों की आवश्यकता है वहीं इसरो इन उपग्रहों से 2500 चित्र उपलब्ध करा रहा है। इन उपग्रहों का उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में भी बाढ़ के हालात पर नजर रखने और आपदा प्रबंधन में किया जा रहा है। इसरो ने कहा है कि उसके उपग्रहों की पैनी निगाह देश के 33 लाख वर्ग किमी भौगोलिक क्षेत्र में और ग्लेशियरों पर है।