उन्होंने कहा कि वर्ष-2013 में मैंने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी बसवा जयंती के इस शुभ दिन पर ली थी। बसवा जयंती पर शपथ लेने का फैसला कोई संयोग नहीं था बल्कि उस दिन मैंने अपने मन में यह कसम खाई थी कि मैं बसवण्णा के बताए मार्ग पर चलना चाहता हूं।
उन्होंने कहा कि पिछले पांच साल में हमारी सरकार ने बसवण्णा के दर्शन और सिद्धांतों के अनुरूप राज्य में काम किया। उन्होंने कहा कि बसवण्णा हमारा मार्गदर्शन करते रहें इसकी प्रेरणा के लिए हमारी सरकार ने अनिवार्य रूप से हर सरकारी कार्यालय में बसवण्णा की तस्वीर प्रदर्शित करने का निर्देश जारी किया।
उन्होंने कहा कि बसवण्णा के सिद्धांत पर चलते हुए हमारी सरकार ने शपथ लेने के तुरंत बाद अन्न भाग्या जैसी योजना लागू की और तत्काल प्रभाव से इसे क्रियान्वित किया। इसी प्रकार क्षीर भाग्या योजना भी लागू की जो सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे छात्रों को दूध प्रदान करती है। शहरी गरीबों की भूख को आत्मसम्मान के साथ दूर करने के लिए इंदिरा कैंटीन कार्यक्रम शुरू किया गया।
उन्होंने कहा कि बसवण्णा समाज में सबसे पिछड़े और दलित लोगों के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अवसर चाहते थे। यदि हम पिछले पांच सालों से हमारी सरकारी योजनाओं को देखते हैं, तो उनमें से हर एक में बसवण्णा के आदर्शों का झलक है। इसी प्रकार कन्नड़ भाषा के प्रति हमारी सरकार की प्रतिबद्धता के पीछे भी बसवण्णा ही प्रेरणात्मक शक्ति हैं।
उन्होंने कहा कि बसवण्णा मानते थे कि कन्नड़ को सिर्फ धर्म की भाषा के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए बल्कि संवाद की एक भाषा के रूप में इसे स्वीकार किया जाए। बसवण्णा के प्रयासों के कारण ही बारहवीं शताब्दी में कन्नड़ भाषा को प्रभावी ढंग से संवाद भाषा के माध्यम के रूप में लागू किया गया था। हमारी सरकार भी कन्नड़ भाषा को उसी रूप में आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।