विश्व में 5 करोड़ से ज्यादा लोग अल्जाइमर की चपेट में हैं। निकट भविष्य में मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ेगी। अनुमान के अनुसार 80 वर्ष की उम्र के बाद 40 फीसदी लोगों पर अल्जाइमर का खतरा है। सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के साथ वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियां बढ़ेंगी। राहत की बात यह है कि अल्जाइमर होने की संभावना का 10-15 वर्ष पहले पता लगाया जा सकता है।
ब्रेन्स अस्पताल के संस्थापक व वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ. एन. के. वेंकटरमन ने बताया कि अल्जाइमर के प्रमुख कारणों में से एक मस्तिष्क में न्यूरॉन्स के आसपास समूहों में एमाइलॉइड-बीटा (एबी) नामक एक प्रोटीन का संचय है, जो उनकी गतिविधि को बाधित करता है। पतन या बिगडऩे को ट्रिगर करता है।
दरअसल एबी एक बड़ा पेप्टाइड (अमीनो अ लों की छोटी श्रृंखला) है जिसमें 39 और 43 एमिनो एसिड होते हैं। मस्तिष्क के न्यूरॉन्स एबी प्लेग (पट्टिका) से भरे होते हैं। इस प्लेग के उतपन्न होने के बाद अल्जाइमर के लक्षण प्रकट होने में 10-15 वर्ष लग जाते हैं। जबकि उन्नत एमआरआइ से समय रहते प्लेग की पहचान संभव है।
डॉ. वेंकटरमन ने बताया कि अल्जाइमर की बीमारी सबसे आम प्रकार की डिमेंशिया है। डिमेंशिया एक प्रमुख जनस्वास्थ्य समस्या है। मस्तिष्क के टेम्पोरल लोब में स्थित हिप्पोकैंपस नामक भाग याददाश्त के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण है। इसे मेमोरी स्टोर भी कहा जा सकता है। अल्जाइमर सबसे पहले इसी भाग को प्रभावित करता है। धीरे-धीरे मस्तिष्क के अन्य हिस्सों को भी चपेट में ले लेता है। न्यूरॉन्स (तंत्रिका कोशिकाएं) मरने लगते हैं।
अल्जाइमर एक प्रगतिशील विकार है, जिसमें किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में न्यूरॉन्स और उनके बीच संबंध धीरे-धीरे बिगड़ जाते हैं। जिससे गंभीर रूप से याददाश्त खोना, बौद्धिक कमियां और कौशल व संचार में गिरावट होती हैं। भूलना या याददाश्त खोना आदि अल्जाइमर के शुरुआती लक्षण हो सकते हंै। अल्जाइमर के बारे में सामाजिक रूप से जागरूकता की कमी है। यह किसी को भी हो सकता है। अल्जाइमर एक बीमारी है। पागलपन नहीं। इसके मरीज बच्चों जैसे होते हैं। इनका विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। इन्हें समाज से काटने नहीं जोडऩे की जरूरत है।
सामाजिक संवाद की कमी
तनाव भरी जिंदगी और लोगों के बीच सामाजिक संवाद कम होने के कारण अल्जाइमर का खतरा बढ़ा है। खुद खुश रहकर और अपने आसपास के लोगों को भी खुश रखकर अल्जाइमर से बचा या दूर रखा जा सकता है। अध्ययनों के मुताबिक तनाव के दौरान शरीर में रासायनिक हार्मोन कोर्टिकोस्टेरॉयड का स्राव होता है जो कि अल्जाइमर के मरीजों में उन मरीजों की तुलना में दो से तीन गुणा अधिक पाया जाता है जो इस रोग से पीडि़त नहीं होते। जीवनशैली में बदलाव, सात से आठ घंटे की अच्छी नींद, तनाव प्रबंधन, ध्यान, योग, नियमित व्यायाम, समाजीकरण और दिन में कम-से-कम 20 मिनट खाली पैर चल कर अल्जाइमर के खतरों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।