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कर्नाटक के विरोध के बावजूद केंद्र ने बनाया कावेरी बोर्ड

locationबैंगलोरPublished: Jun 23, 2018 10:18:59 pm

कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण और कावेरी जल नियामक समिति का गठन

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बेंगलूरु. कावेरी जल बंटवारा विवाद मामले में कर्नाटक के विरोध के बावजूद केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के आदेश के मुताबिक कावेरी बोर्ड का गठन कर दिया। शुक्रवार को जल संसाधन मंत्रालय ने शीर्ष अदालत से अनुमोदित समाधान योजना के मुताबिक कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (सीडब्लूएमए) और कावेरी जल नियामक समिति (सीडब्लूआरसी) का गठन कर दिया। हालांकि, कर्नाटक के नाम नहीं भेजने के कारण दोनों ही निकायों में फिलहाल राज्य के प्रतिनिधि शामिल नहीं हैं। इस योजना को मंत्रालय ने एक जून को राजपत्र में अधिसूचित किया था। प्राधिकरण मुख्य प्रशासनिक निकाय होगा जबकि समिति उसके अधीन होगी और तकनीकी मसलों पर मसलों पर काम करेगी। प्राधिकरण का मुख्यालय दिल्ली में होगा जबकि समिति का मुख्यालय बेंगलूरु होगा। समिति दैनिक गतिविधियों- बांधों में जल के आवक व बहाव, सिंचाई नहरों में पानी छोडऩे, कर्नाटक और तमिलनाडु के सीमा पर स्थित केंद्र पर जल की मात्रा नापने, फसल पद्धति पर नजर रखने का काम करेगी। मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक हर साल मानसून के आगमन के साथ ही १ जून को प्राधिकरण और समिति की बैठक होगी। समिति की रिपोर्ट के आधार पर प्राधिकरण नदी से जुड़े राज्यों के बीच उपलब्ध पानी के अनुपात में हिस्सेदारी तय करेगा और पानी छोडऩे का निर्देश देगा।
संसद में बहस चाहता है कर्नाटक
कर्नाटक ने योजना के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताते हुए बदलाव की मांग की थी। केंद्र सरकार ने दोनों निकायों के लिए संबंधित राज्यों से 12 जून तक अपने प्रतिनिधियों को नामित करने के लिए कहा था लेकिन बोर्ड के गठन का विरोध कर रहे कर्नाटक ने अपने प्रतिनिधि का नाम नहीं भेजा और केंद्र सरकार ने कर्नाटक के प्रतिनिधि के बिना ही दोनों निकायों का गठन कर दिया। मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि दोनों निकायों के गठन में और देरी होने से शीर्ष अदालत की अवमानना की स्थिति का सामना करना पड़ता। अधिकारियों के मुताबिक शुक्रवार तक कर्नाटक से नाम हासिल करने की कोशिश की गई लेकिन राज्य सरकार से सकारात्मक उत्तर नहीं मिलने के बाद दोनों निकायों के गठन का आदेश जारी कर दिया गया।
गौरतलब है कि तमिलनाडु के सांसदों ने संसद के पिछले दो सत्रों में इस मसले को काफी जोर-शोर से उठाया था और कई दिनों तक कार्यवाही भी बाधित की थी। तमिलनाडु के राजनीतिक दलों का कहना था कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के कारण केंद्र सरकार जानबूझ कर देरी कर रही है। कर्नाटक चुनाव के तीन दिन बाद ही केंद्र सरकार ने अदालत में योजना पेश कर दी थी। कावेरी पंचाट के वर्ष 2007 के अंतिम फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए शीर्ष अदालत ने इस साल 16 फरवरी को विवाद के स्थायी समाधान की योजना पेश करने के लिए कहा था। केंद्र सरकार ने छह सप्ताह की समय सीमा में योजना पेश नहीं करने पर तमिलनाडु ने अवमानना याचिका दायर की थी।
कर्नाटक शुरू से ही कावेरी बोर्ड के गठन का विरोध करता रहा है। कर्नाटक का तर्क है कि इससे कावेरी बेसिन के बांधों पर उसका नियंत्रण खत्म हो जाएगा और यह राज्य के अधिकारों में दखल होगा। पिछले सप्ताह दिल्ली प्रवास पर गए मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ने इस मसले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी से भी मुलाकात की थी। कुमारस्वामी ने दोनों नेताओं का राज्य की आपत्तियों से अवगत कराते हुए तकनीक मसलों का निराकरण होने तक समाधान योजना के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग की थी। कुमारस्वामी ने कहा था कि अंतर राज्यीय जल विवाद कानून के तहत ऐसी व्यवस्था के लिए अदालत के बजाय संसद से मंजूरी आवश्यक है और इसलिए केंद्र सरकार को इसे लागू करने से पहले संसद में बहस कराकर मंजूरी लेनी चाहिए। कुमारस्वामी ने कहा था कि राज्य की आपत्तियों का समाधान होने के बाद ही कर्नाटक अपने प्रतिनिधि को नामित करेगा।संसद में बहस चाहता है कर्नाटक
कर्नाटक ने योजना के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताते हुए बदलाव की मांग की थी। केंद्र सरकार ने दोनों निकायों के लिए संबंधित राज्यों से 12 जून तक अपने प्रतिनिधियों को नामित करने के लिए कहा था लेकिन बोर्ड के गठन का विरोध कर रहे कर्नाटक ने अपने प्रतिनिधि का नाम नहीं भेजा और केंद्र सरकार ने कर्नाटक के प्रतिनिधि के बिना ही दोनों निकायों का गठन कर दिया। मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि दोनों निकायों के गठन में और देरी होने से शीर्ष अदालत की अवमानना की स्थिति का सामना करना पड़ता। अधिकारियों के मुताबिक शुक्रवार तक कर्नाटक से नाम हासिल करने की कोशिश की गई लेकिन राज्य सरकार से सकारात्मक उत्तर नहीं मिलने के बाद दोनों निकायों के गठन का आदेश जारी कर दिया गया।
गौरतलब है कि तमिलनाडु के सांसदों ने संसद के पिछले दो सत्रों में इस मसले को काफी जोर-शोर से उठाया था और कई दिनों तक कार्यवाही भी बाधित की थी। तमिलनाडु के राजनीतिक दलों का कहना था कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के कारण केंद्र सरकार जानबूझ कर देरी कर रही है। कर्नाटक चुनाव के तीन दिन बाद ही केंद्र सरकार ने अदालत में योजना पेश कर दी थी। कावेरी पंचाट के वर्ष 2007 के अंतिम फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए शीर्ष अदालत ने इस साल 16 फरवरी को विवाद के स्थायी समाधान की योजना पेश करने के लिए कहा था। केंद्र सरकार ने छह सप्ताह की समय सीमा में योजना पेश नहीं करने पर तमिलनाडु ने अवमानना याचिका दायर की थी।
कर्नाटक शुरू से ही कावेरी बोर्ड के गठन का विरोध करता रहा है। कर्नाटक का तर्क है कि इससे कावेरी बेसिन के बांधों पर उसका नियंत्रण खत्म हो जाएगा और यह राज्य के अधिकारों में दखल होगा। पिछले सप्ताह दिल्ली प्रवास पर गए मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ने इस मसले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी से भी मुलाकात की थी। कुमारस्वामी ने दोनों नेताओं का राज्य की आपत्तियों से अवगत कराते हुए तकनीक मसलों का निराकरण होने तक समाधान योजना के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग की थी। कुमारस्वामी ने कहा था कि अंतर राज्यीय जल विवाद कानून के तहत ऐसी व्यवस्था के लिए अदालत के बजाय संसद से मंजूरी आवश्यक है और इसलिए केंद्र सरकार को इसे लागू करने से पहले संसद में बहस कराकर मंजूरी लेनी चाहिए। कुमारस्वामी ने कहा था कि राज्य की आपत्तियों का समाधान होने के बाद ही कर्नाटक अपने प्रतिनिधि को नामित करेगा।
कर्नाटक नहीं भेजा था नाम
मंत्रालय की अधिसूचना के मुताबिक प्राधिकरण के प्रमुख केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष एस मसूद हुसैन होंगे जबकि आयोग के सिंचाई प्रबंधन संगठन के मुख्य अभियंता नवीन कुमार और केंद्रीय कृषि आयुक्त इसके सदस्य होंगे। केंद्र सरकार के चौथे और पांचवेंं प्रतिनिधि के तौर पर क्रमश : कृषि विभाग के संयुक्त सचिव (रेन फेड फार्मिंग) और जल संसाधन मंत्रालय के संयुक्त सचिव (नदी विकास, नीति व योजना) को शामिल किया गया है। इसके अलावा तमिलनाडु के लोकनिर्माण विभाग के प्रमुख सचिव एस के प्रभाकर, पुदुचेरी के विकास आयुक्त सह सचिव (लोक निर्माण) ए अनबरसु और केरल के जल संसाधन सचिव टिंकू बिस्वाल भी संबंधित राज्यों के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल किए गए हैं। हालांकि, इसमें कर्नाटक के प्रतिनिधि को शामिल नहीं किया गया है। कर्नाटक ने केंद्र के आग्रह के बावजूद अपने प्रतिनिधि को नामित नहीं किया था। केंद्रीय जल आयोग के यमुना बेसिन संगठन के मुख्य अभियंता ए एस गोयल प्राधिकरण के सचिव होंगे।
इसके अलावा नौ सदस्यीय नियामक समिति में कुमार अध्यक्ष और गोयल सदस्य सचिव होंगे। समिति तमिलनाडु का प्रतिनिधत्व जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता (त्रिची संभाग) आर सेंथिल कुमार, केरल का प्रतिनिधित्व मुख्य अभियंता (अंतर राज्यीय जल) के ए जोशी और पुदुचेरी का प्रतिनिधित्व मुख्य अभियंता (लोक निर्माण विभाग) वी षणमुगसुंदरम करेंगे। केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर मौसम विभाग के वैज्ञानिक एम महापात्र, कावेरी व दक्षिणी नदियां संगठन (कोयम्बटूर) के मुख्य अभियंता एन एम कृष्णाउन्नी और केंद्रीय बागवानी आयुक्त को शामिल किया गया है। समिति के लिए भी कर्नाटक ने अपने प्रतिनिधि को नामित नहीं किया था। हालांकि, मंत्रालय की ओर से जारी आदेश में नामित प्रतिनिधि के अभाव में पदेन सदस्य को शामिल करने की बात कही गई है। इसके मुताबिक जल संसाधन विभाग के प्रभारी प्रशासनिक सचिव प्राधिकरण के अंशकालिक सदस्य होंगे जबकि विभाग के मुख्य अभियंता समिति के सदस्य होंगे।
निगरानी में 8 बांध
मंत्रालय के आदेश के मुताबिक तीन राज्यों-कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में कावेरी नदी पर बने 8 बांध समिति की निगरानी के दायरे में आएंगे। इनमें से चार बांध-कृष्णराज सागर, कबिनी, हेमावीत और हारंगी कर्नाटक में हैं जबकि तीन बांध-मेट्टूर, भावनीसागर और अमरावती तमिलनाडु में हैं। केरल में एक बांध बणासुर सागर है।

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