आइसीएमआर के पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआइवी) के शोधकर्ताओं के अनुसार वर्ष 2014 और वर्ष 2017 में इन दोनों व्यक्ति के नमूने जांच के लिए लिए गए थे। दोनों कर्नाटक से हैं। एंटीबॉडी मिलने के मतलब है कि दोनों इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। वैज्ञानिकों ने विभिन्न राज्यों में 883 लोगों के सैंपल लिए थे। दो में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी पाए गए।
एनआइवी के शोधकर्ताओं के अनुसार चीन और वियतनाम में कैट क्यू वायरस की मौजूदगी का पता चला है। वहां क्यूलेक्स मच्छरों और सूअरों में यह वायरस मिला है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि भारत में भी क्यूलेक्स मच्छरों में कैट क्यू वायरस जैसा ही कुछ मिला है। सीक्यूवी मूलत: सूअर में ही पाया जाता है और चीन के पालतू सूअरों में इस वायरस के खिलाफ पनपी ऐंटीबॉडीज पाया गया है। इसका मतलब है कि कैट क्यू वायरस ने चीन में स्थानीय स्तर पर अपना प्रकोप फैलाना शुरू कर दिया है।
वैज्ञानिकों ने विभिन्न राज्यों में 883 लोगों से सैंपल लिए और दो में वायरस के खिलाफ ऐंटीबॉडीज पाए गए। जांच में पता चला कि दोनों लोग एक ही वक्त वायरस से संक्रमित हुए थे। इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में जून महीने में प्रकाशित एक रिसर्च में कहा गया है, इंसानों के सीरम सैंपलों की जांच में ऐंटी-सीक्यूवी आईजीजी ऐंटीबॉडी का पाया जाना और मच्छरों में सीक्यूवी का रेप्लकेशन केपैबिलिटी से पता चलता है कि भारत में यह बीमारी फैलाने की क्षमता रखता है। ऐसे में इंसानों और सूअरों के और सीरम सैंपलों की जांच होनी चाहिए ताकि पता चल सके कि कहीं यह वायरस हमारे बीच पहले से ही मौजूद तो नहीं है। खबरों के मुताबिक चीन और वियतनाम में बड़े पैमाने पर लोग इस वायरस से ग्रसित पाए जा रहे हैं।