क्षमायाचना कर मैत्री स्थापना करें: देवेंद्रसागर
राजाजीनगर में प्रवचन

बेंगलूरु. पर्युषण पर्व के अंतिम दिन आचार्य देवेंद्रसागर ने कहा कि क्षमापना तो पर्वाधिराज के प्राण समान है। जिस तरह हजार किलोमीटर रेल की पटरी एक इंच भी यदि टूट जाए, तो ट्रेन लुढक़ जाती है उसी तरह मन में एक जीव के प्रति भी यदि द्वेष का अंश रह गया, तो आपकी आराधना की पूरी ट्रेन ही लुढक़ जायेगी।
जिस तरह कार में आगे देखने वाला अकस्मात से बच जाता है, ठीक उसी तरह भूतकाल को भूलकर जो व्यक्ति भविष्य में आगे बढऩा चाहता है, वह ही दुर्गतिओं से बच सकता है। कांटे देखने वालों को जिस तरह गुलाब की सुवास नहीं मिलती, ठीक उसी तरह अन्य की भूल को देखने वाला कभी भी अन्य के प्रेम को प्राप्त नहीं कर सकता।
आचार्य ने कहा कि जो नम्रता से अपनी भूल की क्षमा याचना नहीं कर सकता, वह सूखे सागर मुर्दा समान है और जो अन्य की भूल पर क्षमा प्रदान नहीं कर सकता वह दुनिया का सबसे बड़ा कंजूस है, जो स्वयं के घर में ही स्वयं की कब्र खोदता है। छोटी सी क्षमा भावना आपको आत्मिक सुख देने वाली होगी।
संवत्सरी प्रतिक्रमण कर हाथ जोडक़र ‘मिच्छामि दुक्कड़म’ देना मात्र ही हमारा कर्तव्य नहीं है अपितु जीवन में अथवा पूरे वर्ष में जिस-जिस के साथ बैर-विरोध हुए हों, जिस-जिस को हमारे कारण कोई तकलीफ पहुंची हो, उन सभी से हम क्षमायाचना कर मैत्री स्थापना करें। व्यर्थ, अर्थहीन क्षमापना न करें। बार-बार अपराध कर बार-बार क्षमा मांगना कोई मूल्य नहीं रखता।
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