पत्र में नारायण नेत्रालय के अध्यक्ष डॉ. भुजंग शेट्टी ने लिखा है कि मेडिकल उपकरण, लेंस आदि वस्तुओं पर GST दर ज्यादा होने के कारण स्वास्थ्य सेवाएं महंगी हो गई हैं। लेंस पर जीएसटी दर 5 फीसदी से बढ़कर 12 फीसदी हो गई है। मेडिकल उपकरणों पर पहले 5.5 फीसदी की तुलना में अब 18 फीसदी जीएसटी वसूला जा रहा है। जबकि सर्जिकल उपकरणों व ऑपरेशन थिएटर से जुड़े अन्य सामानों पर 5.5 फीसदी के बदले 12 फीसदी जीएसटी भरना पड़ रहा है। जो मरीजों के हित में नहीं है। जीएसटी हटने या कम किए जाने से लाखों मरीज लाभान्वित होंगे। डॉ. शेट्टी के अनुसार देश की बड़ी आबादी निजी अस्पतालों पर निर्भर है। स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के रूप में निजी अस्पतालों की भूमिका अहम है।
डॉ. सोलंकी आई अस्पताल के अध्यक्ष डॉ. नरपत सोलंकी का भी मानना है कि जीएसटी की दरें घटने से स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की लागत में कमी आएगी। कर में कमी का फायदा आखिरकार उपभोक्ताओं को ही होगा। भारत के चिकित्सकीय प्रौद्योगिकी संघ ने भी केंद्र सरकार से चिकित्सा उपकरणों पर जीएसटी दर 12 से पांच फीसदी करने की अपील की है। ज्यादा कस्टम ड्यूटी और रुपए की कीमत में गिरावट से उपकरणों का आयात भी महंगा पड़ रहा है। मेड इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए देश में बनने वाले मेडिकल उपकरणों व सामग्रियों को शून्य जीएसटी के दायरे में लाने की जरूरत है। स्वास्थ्य सेवाओं को जीएसटी को तर्कसंगत बनाने से इनपुट क्रेडिट का मुद्दा भी सुलझेगा।
एचसीजी अस्पताल के अध्यक्ष व कैंसर रोग विशेष डॉ. बीएस अजय कुमार ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र पर भारत का खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 1.15 फीसदी ही है। स्वास्थ्य सेवा उद्योग जीएसटी से प्रभावित हुआ है। इनपुट कर के भुगतान पर अस्पतालों को के्रडिट लेने की इजाजत नहीं है। इससे अस्पतालों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह स्वास्थ्य सेवाओं को जीएसटी से बाहर रखने की संभावनाएं तलाशे।