इंडिया लीगल रिसर्च फाउंडेशन की ओर से यहां शनिवार को आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन में उन्होंने कहा कि कानूनी मामलों के लंबा खींचे जाने के कारण प्रति वर्ष दो लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। यह सम्मेलन भारतीय मध्यस्थता प्रणाली और उससे जुड़ी चुनौतियों पर आयोजित किया गया था। वेंकटचलैया ने कहा कि मुकदमों और मामलों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए यह सही समय है जब देश मध्यस्थता को औपचारिक कानूनी मार्ग के रूप में स्वीकार करे और उसे जल्द से जल्द अपना ले।
उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति मात्र से इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। मध्यस्थता और बीच-बचाव को अधिक महत्व देना होगा ताकि लंबित मामलों का बोझ घटाया जा सके। यह विवादों को कम करने का कारगर तरीका है। डिजिटल युग में मध्यस्थता एक प्रभावकारी उपाय और सही रास्ता है। प्रौद्योगिकी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग भी एक बड़ा कदम साबित होगा।