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चिन्तामणि रत्न के समान अनमोल-कपिल मुनि

locationबैंगलोरPublished: Oct 17, 2021 08:13:46 am

Submitted by:

Yogesh Sharma

21 दिवसीय श्रुतज्ञान गंगा महोत्सव का शुरू

चिन्तामणि रत्न के समान अनमोल-कपिल मुनि

चिन्तामणि रत्न के समान अनमोल-कपिल मुनि

बेंगलूरु. श्रीरामपुरम स्थित जैन स्थानक में विराजित कपिल मुनि के सान्निध्य व वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ विरुगमबाक्कम के तत्वावधान में भगवान महावीर के २५४७ वें निर्वाण कल्याणक पर आयोजित 21 दिवसीय श्रुतज्ञान गंगा महोत्सव का शुभारम्भ शुक्रवार को उत्तराध्ययन सूत्र के प्रथम अध्ययन विनय श्रुत के पारायण और वीर स्तुति से हुआ। मुनि ने कहा कि इस सूत्र में भगवान महावीर की उन शिक्षाओं का संकलन है जिनको आत्मसात करने से जीवन की दशा और दिशा बदल जाती है। उत्तराध्ययन सूत्र का एक एक वचन चिन्तामणि के समान अनमोल है, जिनसे जन्म जन्मान्तर की आतंरिक दरिद्रता को मिटाया जा सकता है। मुनि ने प्रथम अध्ययन का विवेचन करते हुए कहा कि प्रभु महावीर ने अपनी अंतिम देशना में विनय का प्रशिक्षण दिया। क्योंकि विनय ही धर्म का मूल है। विनय गुण से ही जीवन में योग्यता आती है। विद्या से विनय और विनय से पात्रता आती है। योग्य व्यक्ति को ही सम्मान और यश मिलता है। अहंकारी व्यक्ति तो सर्वत्र अपमान और तिरस्कार के योग्य होता है। विनय के बगैर मोक्ष मार्ग की सभी साधना अधूरी और व्यर्थ है। इसलिए व्यक्ति को विनय सम्पन्न बनना चाहिए। मुनि ने कहा कि अहंकार से बढक़र जीवन में कोई अन्धकार नहीं है। अहंकारी के जीवन में सूर्योदय कभी नहीं नहीं होता। अहंकार पुष्टि की भावना से प्रेरित होकर किए गए धार्मिक क्रियाकलाप भी व्यर्थ और निष्फल हो जाते हैं। मुनि ने कहा कि तीर्थकर के अभाव में गुरु का स्थान सर्वोपरि होता है। जीवन विकास में गुरु कृपा ही मूलाधार है। अत: गुरुजनों के प्रति विनय का आचरण करना चाहिए। उनका अविनय,अवज्ञा और आशातना का पाप हर्गिज भी नहीं करना चाहिए। मुनि ने कहा कि विनय का तात्पर्य सिर्फ झुकना ही नहीं होता, बल्कि विनय शब्द इतना व्यापक है कि इसमें शिष्टाचार से लेकर जीवन के सम्पूर्ण सदाचार का समावेश है। इसीलिए भगवान महावीर ने अपनी देशना का श्रीगणेश विनय व्यवहार की शिक्षा से किया। जीवन चाहे गृहस्थ का हो या साधु का। सभी के लिए जीवन व्यवहार का विज्ञान समझना बेहद जरूरी है। इसके अभाव में शिक्षित लोग भी अव्यवहारिक सिद्ध हो जाते हैं। संघ के अध्यक्ष शांतिलाल खिंवेसरा ने बताया कि उत्तराध्ययन सूत्र का वांचन व विवेचन २१ दिन तक प्रतिदिन सयुबह ८:३० बजे से १० बजे तक नियमित रूप से होगा। धर्मसभा का संचालन संघमंत्री बालूराम दलाल ने किया !
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