परमात्मा के सर्वोच्च गुण को आत्मसात करें- देवेंद्रसागर
बैंगलोरPublished: Mar 31, 2020 07:38:31 pm
नवपद की ओली का प्रथम दिन
परमात्मा के सर्वोच्च गुण को आत्मसात करें- देवेंद्रसागर
बेंगलूरु. गत जन्मों के पुण्य से हुआ लक्ष्मी का अर्जन यदि इस जन्म में पाप कार्यो में विसर्जन कर देंगे तो नव जीवन का सृजन कैसे होगा। हमारा आधा जीवन तो सोने में व्यतीत हो जाता है और आधा सोने को बनाने में। हम भूल गए हैं कि इस संसार में विगत जन्मों के संचित पुण्यों को और अधिक तीव्र करना है ताकि हम मुक्ति पथ की ओर अग्रसर हो सकंे। क्योंकि जीवन का अंतिम लक्ष्य तो मुक्ति ही है। लेकिन हम हमारे जन्म के इस मूल उद्देश्य से भटक गए हैं। धर्म साधना, प्रभु आराधना तथा उपासना करने का न तो समय है और न ही संकल्प। यह दुर्लभ मानव जीवन यूं ही व्यर्थ बहता जा रहा है।
यह विचार शाश्वती नवपद ओली के प्रथम दिन आचार्य देवेंद्रसागर ने मीडिया के माध्यम से व्यक्त किए। उन्होंने कहा जीवन में अमरता पाने के लिए हृदयरूपी कमल में करुणा रूपी अमृत की आवश्यकता है। हमारे सभी अरिहंत परमात्मा में करुणा रूपी अमृत सर्वोच्च गुण के रूप में विद्यमान है। भगवान महावीर के जीवन में सदैव दु:ख देने वाले के प्रति प्रभु ने सदैव करुणा की भावना रखी। संगम ने प्रभु महावीर के पैरों में कीलें ठोके, प्रभु का आधा शरीर में धरती में उतर गया।
छह महीने तक प्रभु को आहार ग्रहण नहीं करने दिया। फिर भी प्रभु ने संगम के प्रति करुणा का भाव रख कर उसका कल्याण कर दिया। पाश्र्वनाथ भगवान ने कष्ट देने वाले कमठ के प्रति सदा समता और करुणा भाव रखा। अन्य ने भी इसी तरह से करुणा बरसाई। यह सभी शास्त्र सम्मत बातें यही सिद्ध करती हैं कि परमात्मा के जीवन में करुणा सर्वोपरि है।