शोधकर्ताओं को विभिन्न पराबैंगनी फिल्टरों के माध्यम से ली गई छवियों में 12 हजार से अधिक तारों की अलग-अलग पहचान करने में सफलता मिली है। इस अध्ययन से जुड़े टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान के प्रोफेसर स्वर्ण घोष ने कहा कि विभिन्न फिल्टरों में उनकी चमक को नापकर हम इन पराबैंगनी-प्रकाशमान गर्म तारों के तापमान का अनुमान लगा सके, फिर इसके द्वारा हम इन तारों को अलग-अलग समूहों में बांट सके।
यह एक सामान्य धारणा थी कि ऐसे समूहों में सभी तारे एक ही उम्र के होते होंगे क्योंकि इनका जन्म एक ही विशाल धूल और गैस के बदल से हुआ था, पर इसके विपरीत, हाल के अध्ययनों से पता चला है कि कई गोलाकार गुच्छों में तारों की एक से अधिक रासायनिक संरचना वाली प्रजातियां मिलती हैं। यह अंतर कैसे उत्पन्न होता है अभी अच्छी तरह से समझा नहीं जा सका है, हालांकि एक प्रचलित सिद्धांत द्वारा इस डेटा को बहुत कुछ समझा जा सकता है। एनजीसी-2808 कुछ विशिष्ट है क्योंकि इसके दृश्य प्रकाश में अवलोकन से हमें पता चला है कि इसमें तारों की कम से कम पांच अलग-अलग रासायनिक संरचना वाली प्रजातियां मौजूद हैं।
यूवीआईटी पर पराबैंगनी फिल्टरों के संयोजन का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने प्रत्येक फिल्टर में उनकी चमक के आधार पर गर्म तारों के विभिन्न समूहों को अलग-अलग करने का प्रयास किया और अपेक्षानुरूप प्रत्येक विकासवादी चरण में तारों की पहचान करने में सफल रहे। हालांकि, उन्होंने पहली बार यह भी पाया कि विकसित तारों का एक वर्ग, जिसे रेड हॉरिजॉन्टल ब्रांच कहा जाता है, वास्तव में दो अलग-अलग समूहों से मिलकर बने होते हैं। चूंकि, आकाश में तारों की स्थितियां उन्हें पता थीं, इसीलिए वे ध्यान से देख पाए कि ऐसे तारों के विभिन्न वर्ग तारों के गुच्छे में कहां स्थित थे। उनका यह विश्लेषण व्यापक रूप से स्वीकृत उस मॉडल के साथ असहमति की ओर इशारा करता है, जो यह बताता है कि कैसे किसी एक समूह में तारों की विभिन्न रासायनिक प्रजातियां उत्पन्न होती हैं।
यूवीआईटी की अत्यंत उच्च विभेदन क्षमता (रिजॉल्यूशन) और इसके कई फिल्टरों का लाभ उठाते हुए अन्य गोलाकार समूहों के अलग-अलग तारों के इसी प्रकार के अध्ययन से खगोलविदों को यह समझने में मदद मिल सकती है कि ऐसे समूहों में ये तारकीय रासायनिक श्रेणियां कैसे बनती हैं।