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ऑटो इम्यून डिसॉर्डर: पुरुषों से ज्यादा महिलाएं,बच्चे प्रभावित

locationबैंगलोरPublished: May 21, 2019 12:34:34 am

सैकड़ों ऑटो इम्यून डिसॉर्डर हैं जो चिकित्सा जगत के लिए अब भी चुनौती हैं। इन्हीं में से एक है सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (एलएसइ या ल्यूपस)। यह शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को कमजोर करने वाली बीमारी है।

ऑटो इम्यून डिसॉर्डर: पुरुषों से ज्यादा महिलाएं,बच्चे प्रभावित

ऑटो इम्यून डिसॉर्डर: पुरुषों से ज्यादा महिलाएं,बच्चे प्रभावित

निखिल कुमार
बेंगलूरु. सैकड़ों ऑटो इम्यून डिसॉर्डर हैं जो चिकित्सा जगत के लिए अब भी चुनौती हैं। इन्हीं में से एक है सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (एलएसइ या ल्यूपस)। यह शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को कमजोर करने वाली बीमारी है।
विशेषकर गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए खतरनाक है। ल्यूपस का अब तक स्थायी और प्रभावी उपचार नहीं मिल सका है। दुनिया भर में शोध जारी है। फिलहाल लक्षणों के आधार पर उपचार होता है।


उपचार मुख्य रूप से प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित करने पर केंद्रित होता है। बीते कुछ वर्षों में मरीजों की संख्या बढ़ी है। बड़ी समस्या यह है कि इस बीमारी में मरीज का शरीर खुद के ही प्रतिरक्षा प्रणाली के विपरीत काम करने लगता है। शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है। विभिन्न बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इस बीमारी में हृदय, फेफड़े, गुर्दे और मस्तिष्क भी प्रभावित होते हैं। उपचार और दवाओं का पूर्ण रूप से असर नहीं होता है।


चिकित्सकों का कहना है कि यह बीमारी पुरुषों की तुलना में महिलाओं और बच्चों को अधिक प्रभावित करती है। विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं के लिए कठिनाई पैदा करती है। ल्यूपस से प्रभावित महिलाओं में करीब 20 से 30 प्रतिशत तक ऐसी हैं, जो गर्भधारण या गर्भावस्था में परेशानी का शिकार होती हैं। इसके चलते गर्भपात तक हो जाता है। देश में प्रति हजार की आबादी पर एक व्यक्ति इससे प्रभावित है। इनमें से ९० फीसदी मरीज महिलाएं हैं।

सटीक कारण अज्ञात
डॉ. राव के अनुसार ल्यूपस के कारण रक्त में असामान्य ऑटो-एंटीबॉडीज का उत्पादन होने लगता है। जो विदेशी संक्रामक एजेंटों के बजाय शरीर के अपने ही स्वस्थ ऊतकों और अंगों पर हमला करते हैं। जबकि असामान्य ऑटो-इम्यूनिटी का सटीक कारण अज्ञात है। लेकिन यह जीन और पर्यावरणीय कारकों का मिश्रण हो सकता है। सूरज की रोशनी, संक्रमण और एंटी सीजर दवाओं जैसी कुछ दवाएं ल्यूपस को ट्रिगर कर सकती हैं। आधुनिक जीवनशैली, खानपान, नींद की कमी और तनाव भी इसके कारण हो सकते हैं।

२.५ फीसदी तक बच्चे शिकार
मणिपाल अस्पताल के रूमेटोलॉजी पीडियाट्रिक विशेषज्ञ डॉ. आनंद पी. राव ने बताया कि सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस प्रतिरक्षा प्रणाली की समस्या से संबंधित कई बीमारियों का सामूहिक नाम है। प्रति लाख बच्चों में से ०.३ से २.५ फीसदी इसकी चपेट में आ जाते हैं। वयस्कों में बीमारी के शुरुआती लक्षण सामने आने में छह वर्ष तक का समय लग जाता है। बच्चों में आम तौर पर यह पांच वर्ष की उम्र के बाद ही होता है।

इन लक्षणों से सावधान
बिना कारण लंबे समय तक बुखार, त्वचा और विशेष रूप से चेहरे पर लाल चकते, मुंह में नियमित छाले, जोड़ों में दर्द, बालों का गिरना, वजन घटना, चेहरे और पैरों में सूजन, सिर दर्द, थकान, गालों व नाक पर तितली के आकार के दाने, एनीमिया, रक्त के थक्के बनने की प्रवृत्ति में वृद्धि, ठंड लगने पर हाथों और पैरों की उंगलियों का सफेद या नीले रंग का हो जाना और असामान्य व्यवहार इसके लक्षण हो सकते हैं। लक्षण और रक्त जांच के आधार पर इसकी पुष्टि होती है।

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