मुनि ने कहा जैन दर्शन में नियंता को नहीं, नियमों के साम्राज्य को स्वीकार किया है। हर व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है अपने उत्थान और पतन के लिए वह स्वयं जिम्मेदार होता है। जैन दर्शन किसी ईश्वरीय शक्ति पर विश्वास नहीं करता है। वह मानता है हर आत्मा में परमात्मा का अस्तित्व छिपा हुआ है। जिस दिन हमारी आत्मा अष्ट कर्मों से मुक्त बन जाएगी, उस दिन हमारी आत्मा और सिद्ध भगवान की आत्मा में कोई अंतर नहीं रहेगा जैन धर्म की अवधारण कर्म बात पर आधारित है।
मुनि ने कहा कि विकास की दिशा में अग्रसर होने के लिए मानसिक एकाग्रता और संकल्प बल का जागरण जरूरी है। हमने जिस लक्ष्य का निर्धारण किया है, उस और जागरूकता तथा स्थिरता से आगे बढ़ते रहना चाहिए। मुनि नंजनगुड से विहार कर ऊंटी, कुन्नूर होते हुए कोयम्बत्तूर पहुंचेंगे।