दोबारा पड़े बीसीजी का टीका, तो टीबी का खतरा कम
बैंगलोरPublished: Feb 24, 2020 07:34:49 pm
आइआइएससी के अध्ययन में नए तथ्यों को खुलासा
दोबारा पड़े बीसीजी का टीका, तो टीबी का खतरा कम
बेंगलूरु.
जन्म के समय बीसीजी टीकाकरण के बावजूद अगर एक वयस्क भारतीय को दोबारा यह टीका लगाया जाए तो टीबी की बीमारी काफी हद तक कम की जा सकती है।
भारतीय विज्ञान संस्धान (आइआइएससी) के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि बचपन में बीसीजी का टीका लगवा चुके वयस्क भारतीय अगर दोबारा टीका लगवाते हैं तो उनमें टीबी जैसी बीमारी से लडऩे की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाएगी। इससे टीबी होने का खतरा कम हो सकता है। अध्ययन से पता चला है कि दोबारा बीसीजी का टीका लगाए जाने पर टीएच-17 नामक सफेद रक्त कोशिकाओं के एक विशेष उप समूह की संख्या बढ़ जाती है। टीएच-17 टीबी से मुकाबला करता है। अनुमान के मुताबिक विश्व की एक चौथाई जनसंख्या के शरीर में टीबी बैक्टीरिया माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस सुप्त अवस्था में हो सकता है। भले ही बीमारी के लक्षण स्पष्ट नहीं नजर आए लेकिन, उनमें टीबी होने का खतरा 5 से 15 फीसदी तक है। देश में चिकित्सकीय मान्यता प्राप्त एकमात्र टीका बीसीजी है जिसे भारत में जन्म के समय शिशुओं को लगाया जाता है। यह शिशुओं को टीबी जैसे संक्रामक रोगों से बचाने में मदद करता है लेकिन लगभग 15-20 वर्ष तक ही प्रभावी होता है। इसीलिए, व्यस्कों भारतीयों में टीबी का खतरा बना रहता है।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक
इस शोध से जुड़ी आइआइएससी के संक्रामक रोग अनुसंधान केंद्र (सीआइडीआर) की वरिष्ठ शोधकर्ता अन्नपूर्णा व्याकर्णम कहती हैं ‘इस अध्ययन के जरिए हमने पहली बार यह साबित किया कि अगर भारतीयों में दोबारा बीसीजी का टीकाकरण किया जाए तो इससे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी। इससे रोग प्रतिरोधी कोशिकाओं को बढ़ाया जा सकता है।’ उन्होंने कहा कि बीसीजी एक पूरी तरह जांचा-परखा हुआ टीका है लेकिन, वैज्ञानिकों में उत्सुकता इस बात को लेकर है कि 18-22 वर्ष की आयु के वयस्कों का टीकाकरण टीबी के खिलाफ उनकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कितना कारगर हो सकता है। अध्ययन से यह भी पता चला है कि दोबारा टीकाकरण माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस बैक्टीरिया से संक्रमित टीबी के सुप्त रोगियों को इस बीमारी से बचाने में सफल हो सकता है।
ऐसे हुआ अध्ययन
आइआइएससी के शोधकर्ताओं की टीम ने आंध्रप्रदेश के मदनपल्ली के 200 युवाओं पर यह प्रयोग किया जहां टीबी रोगियों के लिए देश का सबसे पुराना चिकित्सालय है। प्रयोग के दौरान यह जांचने की कोशिश हुई कि टीबी के प्रति संवेदनशील माहौल में दोबारा टीकाकरण से रोगियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर किस तरह का असर होता है। जिन लोगों पर प्रयोग किए गए उन्हें दो समूहों में बांटा गया। एक समूह ऐसा था जिनमें टीबी सुप्त अवस्था में था और दूसरा जिनके शरीर में टीबी के बैक्टिीरिया नहीं थे। सभी को बचपन में बीसीजी का टीका लगाया गया था। दोनों समूहों में आधे-आधे लोगों को दोबारा बीसीजी का टीका दिया या और उनके रक्त नमूनों की जांच 9 महीनों की अवधि के दौरान की गई। इस अध्ययन में यह बात सामने आई कि जिन लोगों को दोबारा बीसीजी का टीका दिया गया उनमें प्रतिरोधक कोशिकाएं अधिक संख्या में पाई गईं।