1983 से पहले राजभवन में होता था शपथ ग्रहण
हेगड़े के पूर्व तक सभी मुख्यमंत्रियों का शपथ राजभवन में होता आया था और बेहद सादा समारोह होता था

बेंगलूरु. राजभवन के बाहर शपथ ग्रहण समारोह के आयोजन की परंपरा 1983 में शुरु हुई। जब रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व में राज्य में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी तब उन्होंने पहली बार परंपरा को तोड़ते हुए विधानसभा सौधा की सीढिय़ों पर शपथ लेकर इतिहास रचा। हेगड़े के पूर्व तक सभी मुख्यमंत्रियों का शपथ राजभवन में होता आया था और बेहद सादा समारोह होता था।
हालांकि, हेगड़े ने अपनी जीत को कांग्रेस के खिलाफ जनता का जनाक्रोश बताया था और खुद को जनता का मुख्यमंत्री बताते हुए परंपरा से हटकर विधानसौधा की सीढियों पर हजारों लोगों की उपस्थिति में शपथ लिया। राज्य के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने हेगड़े का कार्यकाल बेहद झंझावातों वाला रहा। मात्र एक वर्ष के बाद ही अरक बॉटलिंग अनुबंध में अनियमितता के मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट के आए एक निर्णय के बाद हेगड़े ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि, उन्होंने तीन दिनों के बाद अपना इस्तीफा वापस ले लिया लेकिन वर्ष 1988 में एक बार फिर से हेगड़े पर राज्य के कुछ वरिष्ठ राजनेताओं और व्यवसायियों का फोन टैपिंग कराने का आरोप लगा और उन्होंने पद से इस्तीफा
दे दिया।
वर्ष 1990 में वरिष्ठ कांग्रेस नेता एस. बंगारप्पा विधान सौधा की सीढिय़ों पर शपथ लेने वाले राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री बने। हालांकि, वे भी ज्यादा लम्बे समय तक मुख्यमंत्री पद पर नहीं रह पाए। कावेरी विवाद के दौरान हुई हिंसा के बाद बंगारप्पा को मुख्यमंत्री पद छोडऩा पड़ा और उनकी जगह पर वीरप्पा मोइली मुख्यमंत्री बने।
एक बार फिर वर्ष 1999 में एसएस कृष्णा ने विधान सौधा की सीढिय़ों पर राज्य के 16वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। कृष्णा का कार्यकाल बेहद सरल तरीके से पांचवें वर्ष की ओर जा रहा था लेकिन कृष्णा ने अपनी सरकार के पांच वर्ष पूर्ण होने के पूर्व ही विधानसभा भंग करने का निर्णय लिया और वर्ष 2004 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई। वर्ष 2004 में कांग्रेस और जनता दल (ध) की साझा सरकार बनी और धरम सिंह मुख्यमंत्री बने। धरम सिंह का कार्यकाल भी कई उतार चढाव से भरा रहा और अंतत: 2006 में उन्हें मुख्यमंत्री पद छोडऩा पड़ा।
12 वर्ष पूर्व वर्ष 2006 में पहली बार मुख्यमंत्री बने एचडी कुमारस्वामी ने विधान सौधा की सीढिय़ों पर शपथ ली थी। उनके साथ भाजपा के बीएस येड्डियूरप्पा ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। बीस-बीस महीने मुख्यमंत्री रहने के फॉर्मूले पर बनी जद (ध) और भाजपा की गठबंधन सरकार भी आधा कार्यकाल ही पूरा कर पाई।
20 महीने बाद राज्य में पहले भाजपाई मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले येड्डियूरप्पा ने भी विधान सौधा की सीढियों पर शपथ लेने का जोखिम लिया और वे मात्र सात दिनों तक मुख्यमंत्री रह पाए। वर्ष-2008 में जब येड्डियूरप्पा ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तब भी उन्होंने विधान सौधा की सीढिय़ों पर ही शपथ लेने का निर्णय लिया लेकिन फिर से उनका कार्यकाल पूरा नहीं हो पाया। दस वर्ष बाद एक बार फिर से बुधवार को कुमारस्वामी ने विधान सौधा की सीढिय़ों पर शपथ लेकर दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाया। राजनीतिक हलकों में कुमारस्वामी के कार्यकाल को लेकर चर्चाओं का दौर जारी है।
सिद्धरामय्या ने तोड़ी थी परंपरा
वर्ष-2013 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले सिद्धरामय्या ने कंटीरवा स्टेडियम में शपथ लेकर एक नई परंपरा शुरु की थी। संयोग से देवराज अर्स के बाद सिद्धरामय्या राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री बने जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
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