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सामाजिक जीवन में व्यवहार कुशलता जरूरी: मुनि अर्हत कुमार

locationबैंगलोरPublished: Dec 05, 2020 07:39:23 pm

सिद्धार्थनगर में प्रवचन

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मैसूरु. सिद्धार्थनगर में मुनि अर्हत कुमार ने प्रवचन में कहा कि चित्त समाधि स्वयं के हाथ में है। कर्म व्यक्ति के अपने होते हैं। कर्म ही व्यक्ति को सुखानुभूति एवं दुखानुभूति कराते हैं। निमित्त कोई भी हो सकता है। उपादान मज़बूत है तो मनोबल को मज़बूत बनाता है। जिससे चित में समाधि रहती है। सामाजिक जीवन में व्यवहार कुशलता भी होनी चाहिए।
धर्म कभी भी अव्यवहारिक बात नहीं करता। धर्म व्यवहार को साथ में लेकर चलता है। वाणी के सदुपयोग से एवं सहनशीलता से भी चित में समाधि उत्तम होती है। सुनना,बोलना,रहना,कहना,सहना इससे सहनशीलता विकसित होती है। व्यक्ति को कम से कम बोलना चाहिए एवं देखना-सुनना ज्यादा चाहिए। किसी भी बात को पकड़ कर बैठना नहीं चाहिए।
बात को पकड़ कर बैठने से आपसी टकराव होता है जिससे चिंतन आवेशित हो जाता है और बोलचाल बन्द हो जाती है। बोलचाल बंद होने से सभी रास्ते बंद हो जाते हैं और चित में असमाधि उत्पन्न हो जाती है।
मुनि भारत कुमार ने कहा कि गलत फहमियों को दूर कर समता धर्म को अपना कर चित्त समाधि प्राप्त कर सकते हंै। मुनि जयदीप कुमार ने गीत का संगान किया। चित्त समाधि कार्यशाला महिला मंडल के तत्वावधान में आयोजित की गई, जिसमें तेरापंथ सभा व तेरापंथ युवक परिषद का भी पूरा सहयोग रहा। महिला मंडल अध्यक्ष सुधा नवलखा ने मुनि के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की।

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