दरअसल, कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए एक विशेष दस्ते का गठन किया गया है जो होम क्वारंटाइन में रह रहे लोगों पर नजर रखता है। इस दस्ते के साथ लगभग 260 हैम रेडियो ऑपरेटर भी हैं। ये शिफ्टों में काम करते हैं और बूथ स्तर से लेकर वार्ड स्तर तक के कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय करते हैं। ये सुनिश्चत करते हैं कि लोग होम क्वारंटाइन के प्रोटोकॉल का पालन करें। अगर होम क्वारंटाइन का उल्लंघन होता है और समझाने पर बात बिगड़ती है तो ये रेडियो संदेश के माध्यम से पुलिस अधिकारियों को सूचित भी करते हैं। अधिकांश हैम रेडियो ऑपरेटर फील्ड में है लेकिन तीन केंद्र भी स्थापित किए गए हैं।इनमें से एक वसंतपुरा, दूसरा एचबीआर लेआउट और तीसरा जयनगर में स्थापित किया गया है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हैम्स के निदेशक एस.सत्यपाल ने बताया कि पहले कोविड वार रूम के साथ उच्च से लेकर अति उच्च फ्रीक्वेंसी वाले केंद्र स्थापित किए गए थे। बाद में बढ़ते जोखिमों के साथ अपनी गतिविधियों को थोड़ी सीमित कर दिए। अब अपने पड़ोसियों पर नजर रखने के साथ स्क्वाड और टास्क फोर्स को बैक-अप संचार सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं। एक हैम कार्यकर्ता ने कहा कि वे मार्च के अंत से ही बेंगलूरु में स्वेच्छा से सेवाएं दे रहे हैं। प्रवासी मजदूरों को खाने के पैकेट अथवा राशन किट वितरण में भी समन्वय करते रहे। लगभग 1.8 लाख मजदूरों को उनके गृह राज्य भेजने में भी भूमिका निभाई। कुछ कार्यकर्ता रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे पर भी तैनात हैं और यात्रियों को क्वारंटाइन करने में मदद कर रहे हैं।
डॉ सत्यपाल ने कहा कि कई बार होम क्वारंटाइन में रह रहे लोग प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते हुए पकड़े जाते हैं और टोकने पर काफी आक्रामक हो जाते हैं। लोगों की निगरानी में यह एक कठिन चुनौती है। क्योंकि, ऐसे आक्रामक व्यवहार करने वालों से निपटने का प्रशिक्षण प्राप्त नहीं है। तब वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना भेजते हैं जो इस स्थिति से निपटते हैं। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के जमाने में भी हैम रेडियो प्रासंगिक है। यह पहला नेटवर्किंग चैनल है। बिजली रहे या नहीं रहे बैट्री बैक-अप के साथ संचार का यह काफी कारगर माध्यम है। उन्होंने कहा कि आपदा काल में चाहे भूकंप हो या बाढ़ संचार का यह अत्यंत सशक्त माध्यम है। गुजरात में भूकंप, कोडुगू या उत्तर कर्नाटक में बाढ़ के दौरान जब संचार के अन्य माध्यम टूट गए थे तब हैम रेडियो काफी उपयोग में आया।यह एक तरह से वायरलेस संचार है जो पुलिस अधिकारी भी करते हैं। यह त्वरित और पारदर्शी माध्यम है।