सफलता के साथ मानव मन में अहं जन्म लेता है वही अहम उसकी प्रगति को ठप कर देता है। अहम भाव तिनके के समान होता है। उन्होंने कहा कि अहंकारी व्यक्ति की आदत होती है कि वह अपने ही कार्यों को सर्वश्रेष्ठ मान बैठता है। उसके कान हमेशा अपनी प्रशंसा सुनने को ही उत्सुक रहते हैं। कुछ लोग तो प्रशंसा के इतने पिपासु रहते हैं कि अपने विज्ञापन के लिए एक साथी को हमेशा साथ रखते हैं जो कि मिलने जुलने वालों के सामने उनका विज्ञापन करता रहता है।
अहंकार का यह कषाय भयंकर होता है।
उन्होंने कहा कि क्रोध के कीटाणु अहंकार से पैदा होते हैं। क्रोध की जड़ अहंकार है। जब मानव मन में अहंकार पर आघात होता है तो उबल पड़ता है। वह उबलता हुआ अहंकार ही तो क्रोध है।
उन्होंने कहा कि क्रोध के कीटाणु अहंकार से पैदा होते हैं। क्रोध की जड़ अहंकार है। जब मानव मन में अहंकार पर आघात होता है तो उबल पड़ता है। वह उबलता हुआ अहंकार ही तो क्रोध है।