पिछले सप्ताह मंत्रिमंडल ने विधानसभा में पेश विधेयक को ही अध्यादेश के तौर पर लाने का फैसला किया। राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मंगलवार को धर्मांतरण-विरोधी अध्यादेश को मंजूरी दे दी। राज्यपाल की मंजूरी के साथ ही अध्यादेश लागू होने की अधिसूचना भी जारी कर दी गई और राज्य में धर्मांतरण-विरोधी कानून लागू हो गया। अध्यादेश का विधेयक के तौर पर छह महीने में विधानमंडल से पारित होना आवश्यक है।
धर्मांतरण विरोधी कानून में जबरन धर्म परिवर्तन को दंडात्मक बनाया गया है। इसके तहत धर्म परिवर्तन से दो महीने पूर्व जिलाधिकारी के समक्ष एक आवदेन दायर करना होगा। अध्यादेश की जारी की गई प्रति में आवेदन का प्रारूप भी दिया गया है। कानून के अनुसार जो व्यक्ति धर्म परिवर्तन करना चाहता है उसके मूल धर्म और आरक्षण से जुड़ी तमाम सुविधाओं और लाभों को वापस ले लिया जाएगा। लेकिन, व्यक्ति का जिस धर्म में धर्मांतरण होगा, उस धर्म का लाभ मिलेगा। यह अध्यादेश गलत व्याख्या, जबरन, धोखाधड़ी या शादी का लालच देकर धर्मांतरण पर रोक लगाता है।
कानून के तहत जबरन धर्म परिवर्तन के लिए 10 साल तक के कैद का प्रावधान है। नाबालिग, महिलाओं के संबंध में प्रावधानों के उल्लंघन पर तीन से पांच साल के कैद के साथ 25 हजार रुपए जुर्माना और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के संबंध में प्रावधानों के उल्लंघन पर तीन से दस साल तक कैद के साथ 50 हजार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है। धर्म परिवर्तन कराने पर अभियुक्तों को मुआवजे के तौर पर पांच लाख रुपए तक के भुगतान का प्रस्ताव है। सामूहिक धर्मांतरण के संबंध में विधेयक में 3-10 साल की जेल और एक लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रस्ताव है।