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योगी की राह पर दक्षिण के बोम्मई, इस कानून को लागू करने वाला नौवां राज्य बना कर्नाटक

locationबैंगलोरPublished: May 18, 2022 07:09:25 am

Submitted by:

Rajeev Mishra

Karnataka Anti Conversion Ordinance : राज्यपाल की मंजूरी के साथ ही अध्यादेश लागू होने की अधिसूचना भी जारी कर दी गई और राज्य में धर्मांतरण-विरोधी कानून लागू हो गया। अध्यादेश का विधेयक के तौर पर छह महीने में विधानमंडल से पारित होना आवश्यक है।

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विधानमंडल से धर्मांतरण विरोधी विधेयक Karnataka Anti Conversion Law Bill को पारित करवाने में मुश्किल आई तो कर्नाटक की भाजपा सरकार ने इस कानून को लागू करने के लिए अध्यादेश का रास्ता चुना। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने इस कानून को सबसे पहले लागू करने की पहल की थी। कर्नाटक इसे लागू करने वाला नौवां राज्य हैं।
विंध्य के दक्षिण में कर्नाटक ही भाजपा का प्रवेश द्वार है। विधानसभा में बहुमत की बदौलत बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने पिछले साल दिसम्बर में ही इस विधेयक को पारित करा लिया था मगर उच्च सदन यानी विधान परिषद में बहुमत नहीं होने के कारण सरकार ने विधेयक को पेश नहीं किया। दिसम्बर के बाद हुए दो सत्रों में भी सरकार ने बहुमत से एक मत कम होने के कारण विधेयक को पेश करने का जोखिम नहीं लिया। संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक दोनों सदनों से पारित होने और राज्यपाल की मंजूरी के बाद की विधेयक कानून बन सकता था।
पिछले सप्ताह मंत्रिमंडल ने विधानसभा में पेश विधेयक को ही अध्यादेश के तौर पर लाने का फैसला किया। राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मंगलवार को धर्मांतरण-विरोधी अध्यादेश को मंजूरी दे दी। राज्यपाल की मंजूरी के साथ ही अध्यादेश लागू होने की अधिसूचना भी जारी कर दी गई और राज्य में धर्मांतरण-विरोधी कानून लागू हो गया। अध्यादेश का विधेयक के तौर पर छह महीने में विधानमंडल से पारित होना आवश्यक है।
राज्य सरकार के सामने अब इस अध्यादेश को विधान परिषद से पारित कराने की चुनौती है। सरकार विधानमंडल के अगले सत्र में इसे विधान परिषद में पेश करेगी जहां वह बहुमत से सिर्फ एक मत पीछे है। सत्तारूढ़ भाजपा को विश्वास है कि 3 जून को 7 विधान परिषद सीटों पर होने वाले चुनाव के बाद बहुमत का आंकड़ा उसके पक्ष में हो जाएगा।
… तो धर्म बदलने पर छीन ली जाएंगी सुविधाएं
धर्मांतरण विरोधी कानून में जबरन धर्म परिवर्तन को दंडात्मक बनाया गया है। इसके तहत धर्म परिवर्तन से दो महीने पूर्व जिलाधिकारी के समक्ष एक आवदेन दायर करना होगा। अध्यादेश की जारी की गई प्रति में आवेदन का प्रारूप भी दिया गया है। कानून के अनुसार जो व्यक्ति धर्म परिवर्तन करना चाहता है उसके मूल धर्म और आरक्षण से जुड़ी तमाम सुविधाओं और लाभों को वापस ले लिया जाएगा। लेकिन, व्यक्ति का जिस धर्म में धर्मांतरण होगा, उस धर्म का लाभ मिलेगा। यह अध्यादेश गलत व्याख्या, जबरन, धोखाधड़ी या शादी का लालच देकर धर्मांतरण पर रोक लगाता है।
कठोर सजा का प्रावधान
कानून के तहत जबरन धर्म परिवर्तन के लिए 10 साल तक के कैद का प्रावधान है। नाबालिग, महिलाओं के संबंध में प्रावधानों के उल्लंघन पर तीन से पांच साल के कैद के साथ 25 हजार रुपए जुर्माना और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के संबंध में प्रावधानों के उल्लंघन पर तीन से दस साल तक कैद के साथ 50 हजार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है। धर्म परिवर्तन कराने पर अभियुक्तों को मुआवजे के तौर पर पांच लाख रुपए तक के भुगतान का प्रस्ताव है। सामूहिक धर्मांतरण के संबंध में विधेयक में 3-10 साल की जेल और एक लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रस्ताव है।
इससे पहले विधानसभा के बेलगावी सत्र के दौरान दिसम्बर 2021 में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने ‘कर्नाटक धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार संरक्षण विधेयक 2021Ó (प्रोटेक्शन ऑफ राइट टू फ्रीडम ऑफ रिलिजन बिल 2021) विधानसभा से पारित करा लिया था। लेकिन, यह विधेयक विधान परिषद में पेश नहीं किया जा सका।
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