उपवास आहार संज्ञा को तोडऩे के लिए होता है-आचार्य महेन्द्रसागर
धर्मसभा का आयोजन
बेंगलूरु. नाकोड़ा पाश्र्वनाथ जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ राजाजीनगर में विराजित आचार्य महेंद्रसागर सूरी ने कहा कि वह लोग भगवान की पूजा करने पर भी भगवान के दोषी हैं। क्योंकि भगवान ने विषय कसाय को छोडऩे के लिए कहा और वह विषय कषाय से मिलने वाले सुखों को पाने के लिए उनकी पूजा करते हैं। भगवान ने कहा कि वितरागता के मार्ग पर जाइए और हम तो वीतराग की भक्ति के द्वारा भी राग द्वेष को पुष्ट कर रहे हैं। अपने वैषयिक सुखों की मूर्छा उतर जाए और त्याग के पथ पर हम चलें इसलिए भगवान की पूजा करते हैं। परंतु उससे विपरीत ही व्यक्ति की भावना हो रही है। धर्म विषय सुखों की वासना, आसक्ति कम करने के लिए होता है। उसकी जगह व्यक्ति की वैषयिक सुखों की लालसा बढ़ रही है। सामाजिक के द्वारा अनुकूलता का राग तोडऩा होता है। उसकी जगह समय के द्वारा भी अनुकूलता को ही पोसा जा रहा है। उपवास आहार संज्ञा को तोडऩे के लिए करना होता है ना कि पारणे में आहार की आसक्ति को बढ़ाने के लिए। इसलिए लग रहा है कि भगवान को पूजने पर भी हम उनके दोषी बने हुए हैं। धर्म आराधना करके और प्रभु की पूजा करके हमें गुण के स्वामी बनना है। इस अवसर पर संघ के अनेक श्रावक व श्राविकाओं ने प्रवचन श्रवण का लाभ लिया।
धर्मसभा का आयोजन
बेंगलूरु. नाकोड़ा पाश्र्वनाथ जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ राजाजीनगर में विराजित आचार्य महेंद्रसागर सूरी ने कहा कि वह लोग भगवान की पूजा करने पर भी भगवान के दोषी हैं। क्योंकि भगवान ने विषय कसाय को छोडऩे के लिए कहा और वह विषय कषाय से मिलने वाले सुखों को पाने के लिए उनकी पूजा करते हैं। भगवान ने कहा कि वितरागता के मार्ग पर जाइए और हम तो वीतराग की भक्ति के द्वारा भी राग द्वेष को पुष्ट कर रहे हैं। अपने वैषयिक सुखों की मूर्छा उतर जाए और त्याग के पथ पर हम चलें इसलिए भगवान की पूजा करते हैं। परंतु उससे विपरीत ही व्यक्ति की भावना हो रही है। धर्म विषय सुखों की वासना, आसक्ति कम करने के लिए होता है। उसकी जगह व्यक्ति की वैषयिक सुखों की लालसा बढ़ रही है। सामाजिक के द्वारा अनुकूलता का राग तोडऩा होता है। उसकी जगह समय के द्वारा भी अनुकूलता को ही पोसा जा रहा है। उपवास आहार संज्ञा को तोडऩे के लिए करना होता है ना कि पारणे में आहार की आसक्ति को बढ़ाने के लिए। इसलिए लग रहा है कि भगवान को पूजने पर भी हम उनके दोषी बने हुए हैं। धर्म आराधना करके और प्रभु की पूजा करके हमें गुण के स्वामी बनना है। इस अवसर पर संघ के अनेक श्रावक व श्राविकाओं ने प्रवचन श्रवण का लाभ लिया।