बैंगलोर

…लेकिन गिरीश के निधन पर सोशल मीडिया में कुछ लोगों ने खुशियों का इजहार किया

चाहे वह आहार सेवन की आजादी का मामला हो या शहरी नक्सल होने का आरोप हो गिरीश ने बड़ी हिम्मत के साथ बेबाकी से अपने विचार रखे

बैंगलोरJun 12, 2019 / 04:34 pm

Ram Naresh Gautam

…लेकिन गिरीश के निधन पर सोशल मीडिया में कुछ लोगों ने खुशियों का इजहार किया

बेंगलूरु. ज्ञानपीठ पुरस्कृत साहित्यकार डॉ. गिरीश कर्नाड अपनी विचारधारा के प्रति ईमानदार थे। परिस्थिति जैसी भी हो उन्होंने कभी भी अपनी विचारधारा के साथ समझौता नहीं किया।
चाहे वह आहार सेवन की आजादी का मामला हो या शहरी नक्सल होने का आरोप हो गिरीश ने बड़ी हिम्मत के साथ बेबाकी से अपने विचार रखे। साहित्यकार बरगूरु रामचंद्रप्पा ने यह बात कही।
यहां मंगलवार को शहर में कन्नड़ साहित्य परिषद के सभागार में श्रद्धांजलि सभा में उन्होंने कहा कि हमारी परंपरा के अनुसार किसी के निधन के बाद खुशियां नहीं मनाई जातीं, लेकिन गिरीश के निधन के बाद सोशल मीडिया में कुछ लोगों ने लेकर खुशियों का इजहार किया है जो ऐसे लोगों की संकीर्ण मानसिकता का द्योतक है।
भले हम किसी के विचारों से असहमत हों, मगर विचारों का विरोध भी तर्क के साथ शालीन भाषा में ही होना चाहिए।

किसी के विरोध के लिए ओछे स्तर की भाषा का प्रयोग करना सभ्य समाज में शोभा नहीं देता। यही वास्तव में अभिव्यक्ति की आजादी है।
गिरीश ने इसी आजादी के लिए जीवनभर संघर्ष किया था। उन्होंने कहा कि वास्तव में देखा जाए तो गिरीश कर्नाड ने हमारे देश की पौराणिक कथाएं तथा इतिहास के माध्यम से ही मौजूदा सामाजिक असमानता पर प्रहार किया था।
समाज में मौजूद असमानता को हमें स्वीकार करना ही होगा। उनके बहुचर्चित ‘तुगलक’, ‘तलेदंड़ा’ तथा ‘टीपू सुल्तानन कनसुगलु’ नाटकों का यहीं संदेश था।

लेकिन समाज के एक वर्ग ने हमेशा गिरीश कर्नाड का एक समुदाय के विरोधी होने का भ्रामक प्रचार किया।
ऐसे लोगों ने कभी भी कर्नाड की साहित्यिक रचनाओं का गहन अध्ययन नहीं किया। इसी वर्ग ने गिरीश को नक्सल समर्थक होने का आरोप लगाकर लोगों को भ्रमित किया।

साहित्यकार मरलु सिद्धप्पा ने कहा कि गिरीश कर्नाड के निधन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर जिस भाषा में श्रद्धांजलि अर्पित की है, वह सराहनीय है।
बहुआयामी प्रतिभा के धनी गिरीश ने उनको सौंपा गया हर दायित्व बखूबी निभाया उनको अभिनय से अधिक नाटकों की रचना करने में बहुत आनंद आता था।

अंतिम समय तक वे नए नए विषयों पर नाटकों की रचना पर चिंतन-मंथन करते रहे। नाटकों के माध्यम से ही उन्होंने सामाजिक विषमता पर बेबाक संदेश दिया।
इस अवसर पर कन्नड़ साहित्य परिषद के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर पाटिल ने कहा कि गिरीश कर्नाड केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर के लेखक ही नहीं थे, बल्कि एक सक्रिय कार्यकर्ता थे, जिन्होंने कई अभियान, विरोध प्रदर्शनों में भाग लेकर अपना सामाजिक सरोकार निभाया।
इस अवसर पर कन्नड़ विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष प्रो. सिद्धरामय्या ने भी विचार रखे।
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