उत्पादन में गिरावट के प्रमुख कारणों में आम के मंजर आने के समय में मंजरों को पहुंचा नुकसान है। कर्नाटक आम विकास बोर्ड के सदस्यों ने हाल ही में आम उत्पादन क्षेत्रों का दौरा करने के बाद पाया कि वनस्पति कोशिकाओं को नुकसान पहुंचने के कारण पेड़ों पर मंजरी टिक नहीं पाए।
जानकारों के अनुसार न सिर्फ कर्नाटक में बल्कि पूरे दक्षिण भारत में इस वर्ष आम उत्पादन में कमी देखी जा रही है। इसी कारण भी अन्य पड़ोसी राज्यों से कर्नाटक में आने वाले आम की खेप प्रभावित होगी और राज्य के बाजारों में आम की कमी रहेगी।
बेंगलूरु के बाजारों में भी आम की कीमतों में आसामान्य तेजी देखी जा रही है। सामान्यत: अप्रैल के पहले सप्ताह के दौरान आम की कीमतें एक सौ रुपए प्रति किलो से कम हो जाती थीं लेकिन इस बार कीमतों १५० से २०० रुपए प्रति किलो तक है। कीमतों में भारी वृद्धि के कारण आम लोगों की आम खरीदने की तमन्ना अब तक पूरी होती नहीं दिख रही है। आम के कारोबारियों का भी कहना है कि कीमतों में बढोत्तरी के कारण आम की मांग कम है।
आम के लिए यह वर्ष ऑफ सीजन
आम उत्पादन के चक्र में माना जाता है कि एक वर्ष आम उत्पादन के लिहाज से बेहतर मौसम होता है जबकि दूसरा वर्ष असामान्य होता है। इस चक्र के हिसाब से पिछला वर्ष आम उत्पादन का वर्ष था जबकि मौजूदा वर्ष ऑफ सीजन है। हालांकि बागवानी विभाग का कहना है कि इस वर्ष आम के मंजर देर से आए है इसलिए नीलम और तोतापुरी जैसी आम की किस्में जुलाई और अगस्त के महीनों तक बाजार में आती रहेंगी।
आम निर्यात में अग्रणी कर्नाटक
कर्नाटक में आम की कई किस्में हैं। इसमें अलफांसों आम की किस्म बेहद लोकप्रिय है जबकि मल्लिका आम का भी बड़े स्तर पर निर्यात होता है। पिछले वर्ष राज्य में उत्पादित कुल अलफांसो आम का ६० प्रतिशत अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों में निर्यात हुआ। कर्नाटक देश के प्रमुख आम निर्यातक राज्यों में शामिल है और उत्तर प्रदेश, बिहार के बाद कर्नाटक के आमों की कई देशों में मांग है।