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जीव हिंसा न हो, ये सावधानी रखनी चाहिए-डॉ. कुमुदलता

locationबैंगलोरPublished: Aug 09, 2020 04:40:52 pm

Submitted by:

Yogesh Sharma

धर्म चर्चा

जीव हिंसा न हो, ये सावधानी रखनी चाहिए-डॉ. कुमुदलता

जीव हिंसा न हो, ये सावधानी रखनी चाहिए-डॉ. कुमुदलता

बेंगलूरु. श्रीरंगपट्टनम में गुरु दिवाकर मिश्री राज दरबार में साध्वी डॉ. कुमुदलता ने कहा कि कभी भी जीव हिंसा न हो, ये सावधानी रखनी चाहिए। कोई भी कार्य करते समय बिना जरूरी एक भी जीव की हिंसा ना हो उसकी सावधानी रखना, उसे जयणा कहते हैं। किसी भी जीव के द्रव्य प्राण को हानि न पहुंचे। उसका ध्यान रखना यह द्रव्य जयणा है, और किसी भी जीव के भाव प्राण को हानि न पहुंचे, उसका ध्यान रखना वह भाव जयणा है। जयणा पूर्वक प्रवृत्ति करने से अहिंसा के परिणाम का उद्भव होता है। इस कारण से, जयणा, धर्म की माता है। स्वीकार किए हुए व्रत आदि का पालन, जयणा से होता है। इसलिए जयणा, धर्म की पालनहार भी है। अनशन आदि तप की वृद्धि भी जयणा से होती है। जयणा से हमें तथा अन्य को भी सुख होता है, इस तरह वह महा सुखकारी है। इन कारणों से सज्जायकार महर्षि ने दयावान श्रावक को कहा है कि हम सभी को जयणा धर्म का शुद्ध पालन करना अत्यंत आवश्यक है। जल का उपयोग करना पड़े तब भी उसमें रहे हुए त्रस जीवों की हिंसा ना हो इसके लिए पानी को छान कर पीना चाहिए। लकड़ी, गैस, चूल्हा आदि का ध्यान पूर्वक पूंजकर, साफ कर के उपयोग करना चाहिए।
अनाज आदि को छलनी से छानकर, देखकर उपयोग करना चाहिए। सब्जी आदि सुधारना पड़े तब जीवों की हिंसा ना हो उसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। घी, तेल आदि के बर्तन खुले नहीं रखने चाहिए। कोई भी चीज वस्तु, कहीं भी, किसी भी जगह फेंकनी नहीं चाहिए। नीचे देख कर चलना चाहिए। किसी को भी रागादि भाव जागृत हो, या उसमे वृद्धि हो ऐसा बोलना नहीं चाहिए। ऐसी प्रवृत्ति भी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उससे भी फिर आगे चल कर, अब्र ह्म के सेवन द्वारा हिंसा का आचरण हो सकता है। सर्व प्रवृत्ति करते समय, कोई भी जीव के द्रव्य प्राण या भावप्राण की अनावश्यक विराधना न हो उसका पूर्णतया ध्यान रखना, ये भी श्रावक के आवश्यक कर्तव्यों में से एक है। कार्याध्यक्ष मानमल दरला ने यह जानकारी दी।
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