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चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण 15 जुलाई को

locationबैंगलोरPublished: Jun 12, 2019 07:26:03 pm

देश का अति महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-२ पंद्रह जुलाई की सुबह 2:51 बजे लांच किया जाएगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. शिवन ने इसकी घोषणा बुधवार को की। इससे पहले पिछले महीने इसरो ने कहा था कि यह मिशन 9 से 16 जुलाई के बीच लांच किया जाएगा।

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चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण 15 जुलाई को

सुबह 2:51 बजे जीएसएलवी मॉर्क-3 से होगा प्रक्षेपण
चांद पर उतरने के दौरान आखिरी 15 मिनट बेहद डरावने पल : शिवन
लांच पर खर्च होंगे 375 करोड़
बेंगलूरु. देश का अति महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-२ पंद्रह जुलाई की सुबह 2:51 बजे लांच किया जाएगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. शिवन ने इसकी घोषणा बुधवार को की। इससे पहले पिछले महीने इसरो ने कहा था कि यह मिशन 9 से 16 जुलाई के बीच लांच किया जाएगा।
शिवन ने कहा कि चांद की धरती पर लेंडर (विक्रम) के उतरने के दौरान आखिरी 15 मिनट की प्रक्रिया बेहद जटिल है और यह इसरो के लिए डरावना समय होगा क्योंकि इससे पहले इसरो ने कभी भी किसी अन्य पिंड पर उतरने की कोशिश नहीं की है। इसरो के लिए यह पहला अनुभव होगा। इसरो चंद्रयान-2 में भी वही रणनीति अपनाएगा जो चंद्रयान-1 में अपनाई गई थी।
चंद्रयान-2 की लागत 6 03 करोड़
इसरो अध्यक्ष ने बताया कि इस मिशन की लागत 6 03 करोड़ रुपए है। इसमें विदेशों से नेविगेशन सेवाएं हासिल करने के लिए भुगतान की गई राशि भी शामिल है। इसके अलावा चंद्रयान-2 के लॉन्चिंग पर 375 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इस मिशन के लिए इसरो निजी उद्योगों और शैक्षणिक अकादमी पर काफी निर्भर रहा। उद्योग और शैक्षणिक संस्थान चंद्रयान-2 के मसल और ब्रेन हैं। लगभग 500 विश्वविद्यालयों और 120 उद्योगों ने जीएसएलवी मार्क 3 और चंद्रयान-2 में अहम भूमिका निभाई। क्रमश: 8 0 और 6 0 प्रतिशत खर्च इन्हीं को गया है।
१६ दिन में चांद तक पहुंचेंगे तीनों मॉड्यूल
चंद्रयान-2 के तीन मॉड्यूल हैं और उसका कुल वजन 3.8 टन है। रोवर लैंडर के भीतर ही रहेगा और यह दोनों ऑर्बिटर के ऊपर रखे जाएंगे। लॉन्च होने के बाद यह ठोस संरचना (ऑर्बिटर, लैंडर रोवर) को 5 मैनुवर के जरिए चांद तक पहुंचाया जाएगा। इसमें कुल 16 दिन का समय लगेगा। मैनुवर के लिए यान में मौजूद प्रणोदन प्रणाली को उपयोग में लाया जाएगा। इसके बाद चांद की कक्षा में यान को स्थापित करने के लिए ट्रांस-लूनर प्रक्रिया अपनाई जाएगी। चांद तक पहुंचने के लगभग 5 दिन के बाद प्रणोदन प्रणाली का उपयोग करते हुए रेट्रो बर्न किया जाएगा ताकि यान चांद की कक्षा में स्थापित हो जाए। निर्धारित कक्षा में पहुंचने के बाद लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा।
चार दिन चांद की कक्षा में घूमेगा लैंडर
ऑर्बिटर से अलग होने के बाद लैंडर चार दिनों तक चांद की कक्षा में चक्कर लगाएगा। इस दौरान लैंडर चांद की 100 गुणा 30 किमी वाली कक्षा में पहुंचेगा। जब चांद की धरती से लैंडर की दूरी 30 किलोमीटर हो जाएगी तब लैंडर चांद की धरती पर उतरने के लिए रवाना होगा। लगभग 15 मिनट के बाद लैंडर चांद की धरती पर पहुंचेगा। शिवन के अनुसार यह मिशन का सबसे डरावना पल होगा।
6 या 7 सितंबर को चांद की धरती पर उतरेगा लैंडर
चांद की धरती पर लैंडिंग के बाद लैंडर विक्रम के दरवाजे धीरे-धीरे खुलेंगे। उधर, ऑर्बिटर अपनी कक्षा में चक्कर काटता रहेगा। लैंडर के चांद की धरती पर लैंड करने के 4 घंटे बाद रोवर लैंडर से बाहर आएगा। यह बहुत धीमी चलने वाली प्रक्रिया है। रोवर 1 सेंटीमीटर प्रति सेकंड की चाल से चांद की धरती पर चहलकदमी करेगा और लगभग 500 मीटर की दूरी तय करेगा। लैंडर 6 या 7 सितंबर को चांद की धरती पर उतरेगा। यह तारीख इसलिए चुनी गई है क्योंकि उसी दिन से चंद्र दिवस शुरू हो रहा है। लैंडर और रोवर एक चंद्र दिवस यानी लगभग 14-15 पृथ्वी दिवस के बराबर समय तक सक्रिय रहेंगे। वहीं ऑर्बिटर 1 साल तक चांद की कक्षा में चक्कर काटता रहेगा।
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