इसरो अध्यक्ष ने बताया कि इस मिशन की लागत 6 03 करोड़ रुपए है। इसमें विदेशों से नेविगेशन सेवाएं हासिल करने के लिए भुगतान की गई राशि भी शामिल है। इसके अलावा चंद्रयान-2 के लॉन्चिंग पर 375 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इस मिशन के लिए इसरो निजी उद्योगों और शैक्षणिक अकादमी पर काफी निर्भर रहा। उद्योग और शैक्षणिक संस्थान चंद्रयान-2 के मसल और ब्रेन हैं। लगभग 500 विश्वविद्यालयों और 120 उद्योगों ने जीएसएलवी मार्क 3 और चंद्रयान-2 में अहम भूमिका निभाई। क्रमश: 8 0 और 6 0 प्रतिशत खर्च इन्हीं को गया है।
चंद्रयान-2 के तीन मॉड्यूल हैं और उसका कुल वजन 3.8 टन है। रोवर लैंडर के भीतर ही रहेगा और यह दोनों ऑर्बिटर के ऊपर रखे जाएंगे। लॉन्च होने के बाद यह ठोस संरचना (ऑर्बिटर, लैंडर रोवर) को 5 मैनुवर के जरिए चांद तक पहुंचाया जाएगा। इसमें कुल 16 दिन का समय लगेगा। मैनुवर के लिए यान में मौजूद प्रणोदन प्रणाली को उपयोग में लाया जाएगा। इसके बाद चांद की कक्षा में यान को स्थापित करने के लिए ट्रांस-लूनर प्रक्रिया अपनाई जाएगी। चांद तक पहुंचने के लगभग 5 दिन के बाद प्रणोदन प्रणाली का उपयोग करते हुए रेट्रो बर्न किया जाएगा ताकि यान चांद की कक्षा में स्थापित हो जाए। निर्धारित कक्षा में पहुंचने के बाद लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा।
ऑर्बिटर से अलग होने के बाद लैंडर चार दिनों तक चांद की कक्षा में चक्कर लगाएगा। इस दौरान लैंडर चांद की 100 गुणा 30 किमी वाली कक्षा में पहुंचेगा। जब चांद की धरती से लैंडर की दूरी 30 किलोमीटर हो जाएगी तब लैंडर चांद की धरती पर उतरने के लिए रवाना होगा। लगभग 15 मिनट के बाद लैंडर चांद की धरती पर पहुंचेगा। शिवन के अनुसार यह मिशन का सबसे डरावना पल होगा।
चांद की धरती पर लैंडिंग के बाद लैंडर विक्रम के दरवाजे धीरे-धीरे खुलेंगे। उधर, ऑर्बिटर अपनी कक्षा में चक्कर काटता रहेगा। लैंडर के चांद की धरती पर लैंड करने के 4 घंटे बाद रोवर लैंडर से बाहर आएगा। यह बहुत धीमी चलने वाली प्रक्रिया है। रोवर 1 सेंटीमीटर प्रति सेकंड की चाल से चांद की धरती पर चहलकदमी करेगा और लगभग 500 मीटर की दूरी तय करेगा। लैंडर 6 या 7 सितंबर को चांद की धरती पर उतरेगा। यह तारीख इसलिए चुनी गई है क्योंकि उसी दिन से चंद्र दिवस शुरू हो रहा है। लैंडर और रोवर एक चंद्र दिवस यानी लगभग 14-15 पृथ्वी दिवस के बराबर समय तक सक्रिय रहेंगे। वहीं ऑर्बिटर 1 साल तक चांद की कक्षा में चक्कर काटता रहेगा।