scriptचांद की जमीन से आसमान तक छान मारेंगे चंद्रयान-2 के 13 पे-लोड | Chandrayaan-2's 13 payloads will be filtered from the ground sky | Patrika News

चांद की जमीन से आसमान तक छान मारेंगे चंद्रयान-2 के 13 पे-लोड

locationबैंगलोरPublished: Jun 24, 2019 10:42:30 pm

पृथ्वी के सबसे निकटतम पिंड चंद्रमा के बारे में समझ बढ़ाने और मानवता एवं भारत को लाभान्वित करने वाले नवीनतम खोजों के लिए भारतीय मिशन चंद्रयान-2 अगले महीने 15 जुलाई को रवाना होगा।

चांद की जमीन से आसमान तक छान मारेंगे चंद्रयान-2 के 13 पे-लोड

चांद की जमीन से आसमान तक छान मारेंगे चंद्रयान-2 के 13 पे-लोड

राजीव मिश्रा

बेंगलूरु. पृथ्वी के सबसे निकटतम पिंड चंद्रमा के बारे में समझ बढ़ाने और मानवता एवं भारत को लाभान्वित करने वाले नवीनतम खोजों के लिए भारतीय मिशन चंद्रयान-2 अगले महीने 15 जुलाई को रवाना होगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा है कि इस मिशन से एक ऐसी अंतर्र्दृष्टि मिलने की उम्मीद है जो न सिर्फ भविष्य के चंद्र अभियानों की रूप-रेखा बदल देगी बल्कि चंद्रमा की नई सीमाओं तक पहुंचने के लिए नए अभियानों को प्रेरित करेगी। इस पिंड पर पृथ्वी के शुरुआती इतिहास और नवजात सौर प्रणाली के अक्षुण्ण साक्ष्य पड़े हुए हैं जिसपर नजर है।

चंद्रयान-2 के जरिए चंद्रमा की सतह का व्यापक मानचित्रण किया जाएगा जिससे उसकी संरचना में आए बदलावों का अध्ययन करने में मदद मिलेगी। इससे चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास के बारे में अहम जानकारियां मिल सकती हैं। देश के पहले चंद्र मिशन चंद्रयान-1 ने चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता लगाया और अब चंद्र सतह और उप-सतह पर पानी के फैलाव की खोजबीन आवश्यक है। इन तमाम उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी धु्रव पर मिशन भेजने का फैसला किया है जहां अभी तक किसी भी देश ने अपना मिशन नहीं भेजा।


इसरो ने कहा है कि चंद्रमा के दक्षिणी धु्रव का चुनाव इसलिए किया गया क्योंकि उत्तरी धु्रव की तुलना में यहां अधिकांश समय छाया रहता है। इस बात की काफी संभावना है कि जो क्षेत्र स्थायी रूप से साये में हैं वहां पानी होगा। इसके अलावा दक्षिणी धु्रव पर मौजूद के्रटरों में प्रारंभिक सौर प्रणाली के जीवाश्म हो सकते हैं।

दक्षिणी धु्रव के पास ऐसे क्रेटर हैं जिनपर शायद ही कभी सूर्य की रोशनी पड़ती हो और इसरो ने चंद्रयान-2 के लिए दक्षिणी धु्रवीय इलाके में ऐसे ही दो क्रेटरों के बीच स्थान तय किए जहां लैंडर (विक्रम) को उतारा जाएगा। इन्हें ‘मैंजिनस सी’ और ‘सिंपैलियस एन’ नाम दिया गया है। लैंडर उतारने के लिए स्थल चुनाव से कहीं अधिक महत्वपूर्ण चंद्रयान-2 के साथ भेजे जाने वाले वैज्ञानिक उपकरण हैं। क्योंकि, जिन उद्देश्यों के लिए मिशन भेजा जा रहा है उनमें सफलता यहीं उपकरण सुनिश्चित करेंगे।


दरअसल, चंद्रयान-2 के साथ कुल तीन मॉड्यूल आर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) भेजे जा रहे हैं। आर्बिटर में 8 , लैंडर में 3 और रोवर में 2 वैज्ञानिक उपकरण (पे-लोड) हैं।

आर्बिटर के 8 पे-लोड
टिरेन मैपिंग कैमरा 2 (टीएमसी-2) : यह चंद्रमा के धु्रवीय क्षेत्र में सतह का हाई रिजोल्यूशन वर्णक्रमीय तस्वीर उतारेगा। इस उपकरण से चंद्रमा की उत्पत्ति का सुराग मिलेगा। थ्रीडी मानचित्रण तैयार होगा।
ंचंद्रयान-2 लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (क्लास): यह चांद पर मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शिमय, टाइटेनियम, लोहा और सोडियम जैसे रासायनिक तत्वों की मौजूदगी का पता लगाएगा।
सोलर एक्स-रे मॉनिटर (एक्सएसएम): यह चंद्रमा पर सौर विकिरण की तीव्रता को मापेगा साथ ही क्लास (पे-लोड) को सपोर्ट करेगा।
आर्बिटर हाइ रिजोल्यूशन कैमरा (ओएचआरसी): यह लैंडर के उतरने वाले स्थल की हाइ-रिजोल्यूशन तस्वीरें देकर उसकी सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चत करेगा। लैंडर के आर्बिटर से अलग होने के बाद से लेकर चंद्र सतह पर उतरने के बीच हर कदम पर यह उपकरण मददगार साबित होगा।
इमेजिंग आइआर स्पेक्ट्रोमीटर (आइआइआरएस): इसके दो प्रमुख उद्देश्य हैं। पहला चंद्रमा पर संपूर्ण खनिजों और वाष्पशील वातावरण का हाइ रिजोल्यूशन मानचित्रण और पानी/हाइड्रोक्सिल की प्रमुख विशेषताओं (किस स्वरूप में है) आदि निर्धारित करना। यह चंद्रमा की 100 किमी वाली कक्षा में चंद्र सतह से परावर्तित होने वाले विकिरण का भी अध्ययन करेगा।
ड्यूल फ्रीक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर राडार (एसएआर): यह चांद के सतह पर उन क्षेत्रों में जहां कभी सूर्य की किरणें नहीं पड़ती हैं वहां की विशेषताएं बताएगा। धु्रवीय प्रदेशों की हाइ रिजोल्यूशन मैपिंग करेगा और अगर पानी या बर्फ मौजूद है तो उसकी मात्रा कितनी है यह जानकारी देगा।
चंद्रयान-2 एटमोस्फेरिक कंपोजिशनल एक्सप्लोरर (चेस-2) : यह चांद के वातावरण में पानी अथवा वाष्प की मौजूदगी का पता देगा। यह उपकरण एक मास स्पेक्ट्रोमीटर है।
ड्यूल फ्रीक्वेंसी रेडियो साइंस (डीएफआरएस) एक्सपेरिमेंट: यह चंद्रमा के आयनमंडल में इलेक्ट्रॉन के घनत्व के बारे में पता लगाएगा।

लैंडर विक्रम के 3 पे-लोड
रेडियो ऑटोनॉमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फीयर एंड एटमॉस्फीयर (राम्भा): यह चंद्र सतह के परिवेश में इलेक्ट्रॉन के घनत्व और तापमान के बारे में जानकारी देगा। साथ ही चंद्रमा पर अस्थायी प्लाज्मा के विकास और घनत्व के बारे में भी जानकारी देगा।
चंद्र सरफेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंड (चेस्ट): निष्क्रिय मोड ऑपरेशन के दौरान यह चंद्र सतह की विभिन्न गहराइयों पर तापमान की जानकारी देगा। सक्रिय मोड ऑपरेशन में यह एक निश्चित अवधि में तापीय चालकता के बारे में बताएगा।
इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सेस्मिक एक्टिविटी (आइएलएसए): इसका प्राथमिक उद्देश्य लैंडिंग साइट के चारों ओर की भूकंपनीयता का पता लगाना है। यह एक तरह से सीस्मोमीटर है जो भूकंप के कारण जमीन के विस्थापन, वेग या त्वरण का पता लगा सकता है।
रोवर के 2 पे-लोड
अल्फा प्रैक्टिस एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एपीएक्सएस): एक्स-रे प्रतिदीप्ति स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक से यह लैंडिंग स्थल के पास चंद्रमा की सतह की मौलिक संरचना को निर्धारित करेगा। यह मैग्नीशियम, एल्युमीनियम, सिलिका, कैल्शियम टाइटेनियम, लोहा सहित अन्य तत्वों का पता लगा सकता है।
लेजर इनड्यूसड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप( लिब्स): यह उच्च शक्ति वाले लेजर किरणों का प्रहार कर लैंडिंग साइट के पास विभिन्न तत्वों की प्रचुरता के बारे में बताएगा।

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