मनुष्य जिनसे अपने अन्दर अच्छे आचरण और गुणों का विकास करता है वह शक्ति चरित्र ही है। सद्चरित्रता के गुण अच्छे विचार, सद्भाव, उत्तम गुण, सद्प्रकृति, सदाचार व सुंदर विचार चरित्र के निर्माण में सहायक होते हैं। चरित्र के इन गुणों का बनना जन्म से ही प्रारम्भ होता है और जिसकी पहचान मनुष्य के आचार-विचार, रहन-सहन आदि से ही होता है।
यह हमारे व्यवहार और कार्यों में झलकता है। मनुष्य को जीवन जीने की कला सद्चरित्रता ही सिखाती है। अच्छा आचरण तथा चरित्र किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं। यह चरित्र ही है जो नि:स्वार्थ भाव, इमानदारी, धारणा, साहस, वफादारी और आदर जैसे गुणों के मिले-जुले रूप में व्यक्ति में दिखता है।
चरित्रवान व्यक्ति में आत्मबल के साथ-साथ उच्चकोटि का धैर्य एवं विवेक निश्चित रूप से होता ही है।
आचार्य ने आगे कहा कि मनुष्य के व्यक्तित्व की सबसे मजबूत पूंजी चरित्र ही है, जिसको निरन्तर बनाए रखने पर अपना और अपने देश की भलाई है। चरित्र से बड़ी कोई शक्ति नहीं होती है, क्योंकि सत्य, अहिंसा, सदाचार आदि नैतिक मूल्यों से चरित्र का निर्माण होता है।
आचार्य ने आगे कहा कि मनुष्य के व्यक्तित्व की सबसे मजबूत पूंजी चरित्र ही है, जिसको निरन्तर बनाए रखने पर अपना और अपने देश की भलाई है। चरित्र से बड़ी कोई शक्ति नहीं होती है, क्योंकि सत्य, अहिंसा, सदाचार आदि नैतिक मूल्यों से चरित्र का निर्माण होता है।