जयदेव इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोवैस्क्यूलर सांइसेस एंड रिसर्च (Jayadeva Institute of Cardiovascular Sciences and Research) के अध्ययन के अनुसार गत एक दशक में बच्चों के हृदय रोग के मामलों में 18-22 फीसदी वृद्धि हुई है। बच्चों में ज्यादातर दिल में सुराख होना, धमनियों का गलत जुड़ाव व रक्त नलियों में रुकावट के मामले सामने आते हैं। देर से गर्भधारण, प्रदूषण, गर्भावस्था में धूम्रपान और शराब का सेवन बड़े कारण हैं।
जेआइसीएसआर के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. राहुल पाटिल ने बताया कि सीएचडी यानी गर्भावस्था (Pregnancy) में दिल के विकास के दौरान कुछ विकार रह जाने के मामलों में भी इजाफा हुआ है। इस समस्या से निपटने के लिए जेआइसीएसआर को प्रीमेच्योर हृदय क्लिनिक स्थापित करना पड़ा।
हृदय के विकारों से ग्रस्त ज्यादातर बच्चों में ये विकार जन्म के तुरंत बाद अपना असर नहीं दिखाते, कुछ बड़े होने पर बीमारियों के दौरान या सामान्य जांच के दौरान इनकी पहचान होती है। 30 वर्ष की आयु के बाद बच्चे को जन्म देने का मतलब है, बच्चे के हृदय को खतरे में डालना। डॉ. पाटिल के अनुसार भारत पहले से ही मधुमेह की राजधानी के रूप में जाना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार आने वाले समय में भारत हृदय के मरीजों की राजधानी कहलाएगा।