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सातवीं की बोर्ड परीक्षा इस बार नहीं!

locationबैंगलोरPublished: Nov 11, 2019 07:42:02 pm

Submitted by:

Nikhil Kumar

प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा मंत्री एस. सुरेश कुमार ने आनन-फानन में इसी शैक्षणिक सत्र से सातवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा लागू करने की घोषणा की। लेकिन विभाग की तैयारी पूरी नहीं हो सकी है। परीक्षा शुरू करने से पहले कानून में संशोधन और हितधारकों को समझाने के लिए पर्याप्त समय नहीं है।

सातवीं की बोर्ड परीक्षा इस बार नहीं!

सातवीं की बोर्ड परीक्षा इस बार नहीं!

-तैयार नहीं बोर्ड और शिक्षा विभाग
-कानून में संशोधन के लिए चाहिए वक्त
-एसएसएलसी परीक्षा भी कारण

बेंगलूरु.

प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा विभाग इस शैक्षणिक सत्र से सातवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा (Board Exam) लागू कर सकेगा, इसकी दूर-दूर तक संभावना नहीं है। सूत्रों की मानें तो विभाग अपनी तैयारी पूरी नहीं कर सका है। परीक्षा शुरू करने से पहले कानून में संशोधन और हितधारकों को समझाने के लिए पर्याप्त समय नहीं है। प्रदेश बोर्ड 10वीं (SSLC) परीक्षा भी एक बड़ी वजह है।
विभाग के एक अधिकारी के अनुसार इतने कम समय में विभाग के लिए परीक्षा की तैयारी कर पाना संभव नहीं है। प्रश्न पत्र सेट करना भी आसान काम नहीं है। ऊपर से एसएसएलसी परीक्षा नजदीक है। विभाग और कर्नाटक माध्यमिक शिक्षा परीक्षा बोर्ड (केएसइइबी) परीक्षा की तैयारियों में व्यस्त है। परीक्षा का आयोजन 20 मार्च से तीन अप्रेल तक होगा।

असमंजस की स्थिति
आरटीइ टास्क फोर्स (RTE Task Force) के संयोजक नागसिम्हा जी. राव ने कहा कि कम-से-कम इस वर्ष परीक्षा का आयोजन न हो। शिक्षक, विद्यार्थी और अभिभावकों के बीच परीक्षा के आयोजन को लेकर असमंजस की स्थिति है। शिक्षा विभाग परीक्षा की तैयारी भी पूरी नहीं कर सका है। कई अभिभावकों का भी मानना है कि शिक्षा विभाग विद्यार्थियों पर परीक्षा थोपने से बेहतर स्कूल और शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने पर ध्यान दे।

केसीपीसीआर का विरोध जारी
कर्नाटक प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग (Karnataka State Child Rights Protection Commission – केसीपीसीआर) पहले से ही प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा मंत्री एस. सुरेश कुमार (S. Suresh Kumar) के प्रदेश बोर्ड के स्कूलों में सातवीं कक्षा के लिए बोर्ड परीक्षा लागू करने के निर्णय के विरोध में है।

केसीपीसीआर के अध्यक्ष फादर एंटनी सेबस्टियन के अनुसार सातवीं कक्षा में पढऩे वाले बच्चों की औसत उम्र बेहद कम होती है। इस उम्र में सार्वजनिक परीक्षा किसी भी तरह से बच्चे की योग्यता, ज्ञान या कौशल का मूल्यांकन करने में मददगार साबित नहीं होगी। ऐसी परीक्षाओं से बच्चों में चिंता और मानसिक आघात का खतरा बढ़ता है। आरटीइ अधिनियम और अन्य संवैधानिक प्रावधान के तहत नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के जनादेश के बावजूद इस तरह का निर्णय क्यों लिया गया। केसीपीसीआर के अनुसार यह नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा (आरटीइ) अधिनियम 2009, का सरासर उल्लंघन होगा। हालांकि मंत्री ने आरटीइ अधिनियम को संशोधित करने की बात कही है।

बोर्ड या सार्वजनिक परीक्षा की इजाजत नहीं
फादर सेबस्टियन ने कहा कि आरटीइ की धारा 30 (1) में साफ उल्लेख है कि बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने तक किसी प्रकार के बोर्ड या सार्वजनिक परीक्षा की इजाजत नहीं है। आरटीइ अधिनियम की संशोधित धारा 16 में भी उल्लेख है कि कक्षा पांच और आठ के शैक्षणिक वर्ष के अंत में नियमित परीक्षा ली जा सकती है। बच्चे के फेल होने की स्थिति में उसे दूसरा मौका मिलना चाहिए। फिर से विफल होने की स्थिति में यह सरकार का निर्णय होगा की प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने तक बच्चे को किसी कक्षा में रोकना है या नहीं।

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