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मोदी को राहुल नहीं, सीएम सिद्धू देंगे चुनौती

locationबैंगलोरPublished: Feb 07, 2018 11:20:06 pm

पिछले चार साल के दौरान देश के जिन भी राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए वहां मुकाबला भाजपा के सबसे बड़े चेहरे

Siddaramaiah, modi

बेंगलूरु. पिछले चार साल के दौरान देश के जिन भी राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए वहां मुकाबला भाजपा के सबसे बड़े चेहरे व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच रहा लेकिन राज्य के आसन्न चुनाव में स्थिति बिल्कुल अलग होगी। यहां मोदी को राहुल नहीं मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या चुनौती देंगे।

दक्षिण के अपने किले को बचाने के लिए जूझ रही कांग्रेस ने मोदी के मैजिक का मुकाबला करने के लिए राहुल के बजाय स्थानीय चेहरे को आगे कर रही है। कांग्रेस आलाकमान का मानना है कि सिद्धरामय्या ने पांच साल सरकार चलाई और जनता से किए वादे पूरे किए हैं, इसलिए कांग्रेस सरकार के खिलाफ मोदी और भाजपा के हमलों पर पलटवार करने के लिए भी उन्हें ही मोर्चा संभालना चाहिए। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि सिद्धरामय्या सरकार के खिलाफ ना तो सत्ता विरोधी लहर है और सरकार की छवि भी बेदाग रही है जबकि भाजपा के पास ना तो ठोस मुद्दे हैं और ना ही बेदाग चेहरा ही।

ऐसे में मोदी के सरकार के खिलाफ आरोपों का जवाब देने के लिए राहुल के बजाय सिद्धू को आगे करने से पार्टी को दोहरा फायदा होगा। एक तो सिद्धरामय्या हर आरोप का बिंदुवार जवाब देकर भाजपा और मोदी पर प्रभावी पलटवार कर सकेेंगे। दूसरा, मोदी व सिद्धरामय्या के बीच मुकाबला की स्थिति बनने से उनकी छवि भी मजबूत होगी। लोकसभा चुनाव के बाद चंद राज्यों तक सिमट चुकी कांग्रेस के पास अभी कर्नाटक ही सबसे बड़ा राज्य है और पार्टी यहां सत्ता बचाने के लिए हर दांव आजमा रही है। पार्टी आलाकमान ने सिद्धू को राजनीतिक हालात व नफा-नुकसान के हिसाब से मसलों को उठाने की छूट भी दे दी है।


मोदी को दो टूक जवाब
जिस तरह मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह पर निशाना साधते थे, सिद्धू भी अब उसी अंदाज में मोदी पर निशाना साध रहे हैं। हालांकि, अपने बयानों में ज्यादा तंज नहीं होने के बावजूद सिद्धू ने हमले के अंदाज से भाजपा के नेताओं की परेशानी बढ़ा दी है। रविवार को मोदी के बेंगलूरु पहुंचने से पहले ही ट्वीट कर सिद्धू ने मोदी का स्वागत करने के साथ ही महादयी मसले को लेकर उन पर हमला भी बोला। सिद्धू ने उनसे महादयी मसले को सुलझाने के लिए कुछ समय निकालने की अपील की थी। मोदी की रैली खत्म होने के कुछ ही देर बाद सिद्धू ने भाषण में लगाए आरोपों पर पलटवार करते हुए कई ट्वीट किए।

इसके बाद कांग्रेस के बाकी नेताओं ने भी सिद्धू का अनुकरण किया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जी परमेश्वर ने संवाददाता सम्मेलन कर मोदी के आरोपों का जवाब दिया। सोमवार को सिद्धू ने प्रधानमंत्री से अपनी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर मोदी से ना सिर्फ सबूत मांगा बल्कि उनके और शाह के बयानों को लेकर ही आरोपों को भी खारिज करने की कोशिश की। गोधरा कांड का जिक्र कर सिद्धू ने भाजपा और मोदी की दुखती रग भी हाथ रख दिया।


समीकरण ही नहीं, हालात भी बदले
हाल के दशकों में यह पहला मौका है जब कांग्रेस सत्ता बरकरार रखने के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व के बजाय मुख्यमंत्री पर इतना ज्यादा भरोसा कर रहा है। कांग्रेस की रणनीति का केंद्र अब दिल्ली से बेंगलूरु आ गया है तो इसके ठीक उलट भाजपा का केंद्रबिंदु अब बेंगलूरु के बजाय दिल्ली हो गया। भाजपा की रणनीति अब दिल्ली में बन रही है और पार्टी में सत्ता में आने के लिए मोदी के व्यक्तित्व के सहारे है। कुछ वर्ष पहले तक येड्डियूरप्पा ही प्रदेश में भाजपा के सुप्रीमो था और आलाकमान का ज्यादा दखल नहीं था। लेकिन अब बदले हालात में सबकुछ दिल्ली तय कर रहा है जिसके कारण चुनावी जंग में मोदी बनाम सिद्धरामय्या की स्थिति बन रही है।


जनता परिवार के नेता रहे सिद्धरामय्या ने बदले हालात को देखते हुए खुद को मजबूत नेता के तौर पर पेश कर आलाकमान का विश्वास जीता और अब पार्टी के सारथी बने हुए जबकि येड्डियूरप्पा ने हालात के मुताबिक खुद को ढाल लिया।


वर्ष २०१३ में हालात बिल्कुल अलग था। भाजपा तीन हिस्सों में बंटी थी। येड्डियूरप्पा और बी श्रीरामुलू ने अलग पार्टी बना ली थी जिसका फायदा कांग्रेस को मिला। हालांकि, उस वक्त आंतरिक कलह से जूझ रही कांगे्रस में सिद्धरामय्या सर्वमान्य नेता नहीं थे।


केंद्र में कांग्रेस की सरकार अंतिम दिन गिन रहे थे और भाजपा में नए नेता के तौर पर मोदी उभर रहे थे। कांग्रेस बिना भावी मुख्यमंत्री के चेहरे को पेश किए चुनाव में उतरी और जीत गई। हालात ने सिद्धरामय्या को कांग्रेस का पहला गैर मूलकांग्रेसी मुख्यमंत्री बना दिया। बाद में येड्डियूरप्पा और श्रीरामुलू भाजपा में लौट आए। कोई दूसरा मजबूत चेहरा नहीं होने के कारण भाजपा ने येड्डियूरप्पा को भावी मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करने का फैसला किया। मुख्यमंत्री पद की जंग तो सिद्धरामय्या और भाजपा के बीच है लेकिन वास्तविक राजनीतिक लड़ाई अब मोदी और सिद्धरामय्या के बीच हो गई। येड्डियूरप्पा और दोनों पक्षों के बाकी नेता अब दूसरे नंबर पर रह गए हैं। मंझे हुए नेता सिद्धरामय्या ने पिछले चार साल में विपक्ष के हर वार को अपने अंदाज में दूसरे मुद्दों को छेडक़र कुंद कर दिया। सिद्धरामय्या को मात देने के लिए भाजपा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े को आगे कर रही है लेकिन सिद्धरामय्या ने अब रोज सवाल पूछने की नई रणनीति अपना ली है। कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि सिद्धरामय्या भाजपा के हिंदुत्व और मोदी के ओबीसी कार्ड को अकेले चुनौती दे रहे हैैं। गुजरात में राहुल ने अग्रिम मोर्चा संभाला था लेकिन कर्नाटक में सिद्धरामय्या ऐसा करेंगे। अगर सिद्धू जीतते हैं तो उनका कद बढ़ेगा और अगर वह पार्टी को नहीं जीता पाए तो उनके पास व्यक्तिगत तौर पर खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं रहेगा।

एक महीने में ४ बार आएंगे मोदी

बेंगलूरु. पिछले सप्ताह पार्टी के चुनाव अभियान की शुरुआत करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आचार संहिता लागू होने से पहले कम से कम चार बार प्रदेश के दौरे पर आएंगे। माना जा रहा है चुनाव आयोग अप्रेल-मई में होने वाले चुनाव के लिए मार्च के दूसरे या तीसरे सप्ताह में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर सकता है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि मोदी अगले एक महीने में कम से कम चार रैलियों को संबोधित करेंगे।
प्रदेश भाजपा के नेताओं के मुताबिक पार्टी ने कलबुर्गी, मैसूरु, रायचूर और दावणगेरे में चुनाव की घोषणा से पूर्व मोदी की रैली आयोजित करने की योजना बनाई है। बताया जा रहा है कि इसमें से सबसे बड़ी रैली का आयोजन इसी महीने के अंत में दावणगेरे में करने की तैयारी है। इस रैली का आयोजन २७ फरवरी को प्रदेश अध्यक्ष बी एस येड्डियूरप्पा के ७५ वें जन्मदिन पर करने की योजना है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह रैली किसान केंद्रित होगी और इसे रैयत मित्र का नाम दिए जाने पर विचार चल रहा है।

पार्टी के एक अन्य नेता ने कहा कि ४ फरवरी को परिवर्तन यात्रा के समापन पर बेंगलूरु में आयोजित मोदी की सभा में राज्य के १८ जिलों के लोगों ने भाग लिया था। बाकी १२ जिलों के लिए इन चार रैलियों के आयोजन पर काम चल रहा है। ३-४ जिलों के लिए आयोजित होने वाली इन रैलियों में एक लाख तक लोगों को जुटाने का लक्ष्य रहेगा। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से पहले भाजपा मोदी की कम से कम १० और रैलियां कराना चाहती थी लेकिन संसाधनों को देखते हुए इसे सिर्फ ४ तक सीमित रखने का निर्णय किया गया। चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के बाद मोदी कई बार प्रदेश के दौरे पर आएंगे और अलग-अलग इलाकों में सभाएं करेंगे।

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