बैंगलोर

सम्पत्ति कर संग्रह के मुद्दे पर हंगामा

हुब्बल्ली-धारवाड़ महानगर निगम के सम्पत्ति कर संग्रह में भारी गोलमाल हुआ है यह आरोप लगाते हुए अनेक पार्षदों ने शुक्रवार को नगर निगम की साधारण सभा में खूब शोरशराबा किया।

बैंगलोरSep 01, 2018 / 11:16 pm

शंकर शर्मा

सम्पत्ति कर संग्रह के मुद्दे पर हंगामा

हुब्बल्ली. हुब्बल्ली-धारवाड़ महानगर निगम के सम्पत्ति कर संग्रह में भारी गोलमाल हुआ है यह आरोप लगाते हुए अनेक पार्षदों ने शुक्रवार को नगर निगम की साधारण सभा में खूब शोरशराबा किया। हुब्बल्ली स्थित नगर निगम कार्यालय के सभा भवन में महापौर की अध्यक्षता में आयोजित सभा में कांग्रेस पार्षद गणेश टगरगुंटी ने गोलमाल का मुद्दा उठाया। इस पर सभी पार्षदों ने सहमति व्यक्त की।

टगरगुंटी ने आरोप लगाया कि गणमान्य व्यक्ति, प्रतिष्ठित कम्पनियों के भवन कर को निगम अधिकारियों ने नियमित रूप से नहीं वसूल रहे हैं। निगम अधिकारी गणमान्य व्यक्तियों तथा प्रतिष्ठित कम्पनियों के मालिकों के साथ हाथ मिलाया है। नगर निगम कर्मचारी तथाअधिकारियों के भ्रष्टाचार के कारण निगम आय में बहुत कमी आई है। पार्षद गणेश टगरगुंटी के गंभीर आरोप को सभी पार्टियों के पार्षदों ने अपना समर्थन व्यक्त किया तथा इस मामले के जांच करने का आग्रह किया।

पिता का प्रेम व मां की शक्ति नहीं खरीद सकते
मैसूरु. स्थानकवासी जैन संघ में समकित मुनि ने कहा कि सब चीजें पैसे से खरीदी जा सकती हैं पर पिता का प्रेम व मां की शक्ति नहीं खरीदी जा सकती। इंसान भी अजीत्व है, अपने बच्चों को तो सब कुछ देना चाहता है पर अपने मां बाप से सुब कुछ लेना चाहता है।


उन्होंने कहा कि वे जागकर रात भर जिसे सुलाती रही बुढ़ापे में वही औलाद उसे बार बार रुलाती रही। मां बाप कितने अरमान व विश्वास के साथ पढऩे के लिए भेजते हैं।


सभा में चेन्नई के गौतम सांखला, जयमल नंदावत, मदन गन्ना, भंवर दरला, पारसमल खारीवाल आदि उपस्थित थे। अध्यक्ष कैलाशचंद जैन ने स्वागत किया।

आचार्य विजय राजतिलक ने किया त्रिपद को आत्मसात
मैसूरु. सुमतिनाथ जैन संघ के महावीर भवन में जैनाचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने आचार्य विजय राजतिलक सूरी के २०वीं पुण्य तिथि निमित्त गुणानुवाद सभा व १००८ से अधिक आयंबिल करवाए। आचार्य ने कहा कि छोडऩे जैसी विदाई, करने जैसा आयंबिल, पाने जैसा आनाहारी पद का आचार्य राजतिलक सूरी ने सिर्फ उपदेश ही नहीं दिया था, बल्कि उस त्रिपदी को उन्होंने जीवन में भी अच्छी तरह से आत्मसात किया था।


विदाई का भोजन शरीर में विकार पैदा करता है। आयंबिल का भोजन सात्विक आहार कहलाता है। आचार्य सतत् स्वाध्याय मग्न रहकर आत्म मस्ती का अनुभव कर सकते थे क्योंकि उनके मन में से वैकारिक वासनाएं समाप्त हो चुकी थी। वे निर्मल ब्रह्मचर्य के स्वामी थे।

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