इसके बाद कई समुदायों ने अलग निगमों के गठन की मांग की है।राज्य मंत्रिमंडल से काडुगोला और मराठा समुदाय विकास निगम के गठन को मंजूरी मिल चुकी है जबकि वीरशैव लिंगायत विकास निगम की मंजूरी लंबित है। लिंगायत के बाद अब सरकार पर राजनीतिक तौर पर प्रभावी दो अन्य समुदायों-वोक्कालिगा और कुरुबा के लिए भी विकास निगम बनाने का दबाव है।
लेकिन, अब ऐसे निगमों के धन आवंटन की व्यवस्था को लेकर सवाल उठ रहे हैं। राज्य में अभी जाति या समुदाय आधारित २० निगम हैं, जिनमें से अधिकांश को सरकार पर्याप्त धन नहीं आवंटित कर पा रही है। काडुगोला और मराठा निगम के लिए सरकार ने शुरुआती तौर पर ५०-५० करोड़ रुपए देने की बात कही थी लेकिन वीरशैव-लिंगायत निगम के लिए ऐसी कोई घोषणा नहीं हुई। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आर्थिक तंगी के मौजूदा हालात में एक-एक पैसे का महत्व है। हर निगम को धन देने का आश्वासन दिया गया है लेकिन आवंटन उपलब्धता के आधार पर ही हो सकता है।
समाज कल्याण और पिछड़ वर्ग विभाग के अधीन आने वाले इन निगमों में से अधिकांश की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं है। पिछड़ा वर्ग विभाग के अधिकारियों के मुताबिक १० निगमों को आवंटित किए जाने वाले करोड़ों रुपए अभी जारी नहीं हुए हैं और ना ही इन निगमों को कोई अनुदान ही दिया गया है। एक अधिकारी ने कहा कि चालू वित्त वर्ष के दौरान कोरोना से उपजे हालात के कारण अधिकांश निगमों के पास कोई धन नहीं है।
20 में से १५ निगमों में अध्यक्ष भी नहीं हालत यह है कि 20 में से 15 निगमों में अध्यक्ष का पद ही रिक्त है। कई निगमों के कार्यालय नहीं हैं। पिछली सिद्धरामय्या, एचडी कुमारस्वामी और अब बीएस येडियूरप्पा के नेतृत्व वाली सरकार ने कई नए निगम बनाए हैं। देवराज अर्स पिछड़ा वर्ग विकास निगम, कर्नाटक विश्वकर्मा विकास निगम, कर्नाटक उप्पार विकास निगम, मडिवाल माचिदेव विकास निगम, बंजारा विकास निगम, डॉ बीआर आम्बेडकर विकास निगम, बाबू जगजीवनराम चर्मकार विकास निगम, अल्पसंख्यक विकास निगम, ईसाई विकास निगम, बोवी विकास निगम, सफाई कर्मचारी विकास निगम, सविता समाज विकास निगम के अध्यक्ष नहीं हैं।